Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 16
________________ अने आंतरसंबंध निश्चित करवानुं तथा ए सामग्रीने व्यापक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यमां तपासवानुं पायानुं कार्य कर्यानो यश सदगत प्रा. वेलणकरने घटे छे । ए संपादनोनी भूमिकामां तथा अंते आपेला अनेक परिशिष्टोमां वेलणकरे प्राकृतअपभ्रंश छंदो विशे अने छंदोरचना विशे घणी हकीकतो तारवी आपी छे तथा तेने लगता विविध प्रश्नोनो ऊहापोह कर्यो छे । अहीं प्राप्त अपभ्रंश कृतिओने अनुलक्षीने याकोबी, आल्स्डोर्फ वगेरे ए तथा में छंदस्वरूप अने छंदप्रकारनी दृष्टिए माहिती आपी छे । परंतु ते ते समयमा प्रचलित-प्रयुक्त अपभ्रंश छंदो ने समग्रपणे, परिवर्तननी दृष्टिए तथा अपभ्रंश पिंगळोना संदर्भमां तपासीने कशुं अन्वेषणकार्य भाग्ये ज थयुं छे । ते ज प्रमाणे भारतीय भाषासाहित्यने मळेला अपभ्रंश छंदोना वारसा विशे छूटकजूटक थोडंक काम थयुं छे, पण अपभ्रंश छंदोना अने साहित्यना सघन परिचयने अभावे ते काम उपरचोटियुं के काचुं थयुं छे । जूनी गुजराती छंदोना इतिहासनी पोतानी विचारणामां सद्गत प्रा. रामनारायण पाठके अपभ्रंश छंदोनां गेय स्वरूपने ध्यानमां लीधुं छे खरुं ३. पण तेमनी विचारणा तालना तत्त्व पूरती ज मर्यादित छे, स्वरना तत्त्वनो तेमणे स्पर्श कर्यो नथी । ५. अहीं, मारुं प्रयोजन थई गयेला कार्य- पुनरावर्तन के दोहन करवानुं नथी । हुं आ विषयना अस्पृष्ट रहेला मुद्दाओमांथी मात्र बे-त्रणने ज स्पर्शवानो अने बीजा थोडाक मुद्दाओनी चर्चा आगळ चलाववानो प्रयास करीश । प्राकृत तथा अपभ्रंशना छंदःशास्त्रनी अत्यार सुधी जे कांई विचारणा थई छे, तेमां बे पायानी बाबतो गणतरीमां नथी लेवाई । एक तो ए के अपभ्रंश साहित्यप्रकारोना संदर्भे अपभ्रंश छंदोनो विचार करवो अनिवार्य छ । बीजूं, प्राकृत तथा अपभ्रंश छंदो मात्र तालबद्ध होवाथी संगीत, नाट्य अने नर्तननां क्षेत्रो साथे पण तेमनो गाढ संबंध हतो । आ बंने बाबतोने ध्यानमां न लईए तो मात्र छंदोनुं स्थूळ, अमूर्त माळखं-तेमर्नु हाडपिंजर आपणा हाथमां आवे, तेमनुं हार्द, तेमनुं सजीव के चेतनवंतु स्वरूप तद्दन अस्पृष्ट रहे । ६. हेमचंद्रे मुख्यत्वे अपभ्रंश काव्योमा थयेला प्रत्यक्ष प्रयोगोने आधारे नहीं, पण पूर्ववर्ती अपभ्रंश पिंगळोने आधारे-तेमनुं संकलन करीने प्राकृतअपभ्रंश छंदो, निरूपण करेलुं छे । बीजी बाजु स्वयंभू पोते अपभ्रंश साहित्यनो एक अग्रणी महाकवि हतो । ते सो-सो जेटला संधिओ (एटले के सर्गो)मां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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