Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ १३ प्रस्तुत अनुवादमां वेलणकरना संपादनमां आपेला सूत्रपाठ, वृत्ति अने 'पर्याय' टिप्पणकनो साभार आधार लीधो छ । हस्तप्रतोनी दुर्लभता, कंठस्थ करवाथी अध्ययन-अध्यापनमां सरळता वगैरे कारणे शास्त्रकारो सूत्रपद्धतिए रचना करता हता। सूत्र अने वृत्तिमां सहेजे पुनरुक्ति होईने, अनुवादमा वृत्तिने अनुसरवानुं राख्युं छे । संदर्भ माटे उपयोगी थाय ए दृष्टिए सूत्रपाठ अंते आप्यो छ । प्राकृत अने अपभ्रंश साहित्यकृतिओना संपादन अने समजण माटे ए भाषाना छंदोना स्वरूप, बंधारण अने प्रयोगनी जाणकारी अनिवार्य होवाथी ए माटे आ अनुवाद गुजराती वाचकोने उपयोगी थशे । २. हेमचंद्र अने स्वयंभूनुं प्राकृत-अपभ्रंश छंदोनुं निरूपण (तेना केटलांक महत्त्वनां पासां) (१) १. हेमचंद्राचार्ये रचेला विविध शास्त्रग्रंथोमां तेमनुं 'छंदोनुशासन' (=छंशा.) पण घणुं महत्त्व धरावे छे अने समग्रपणे प्राचीन भारतीय छंदःशास्त्रना साहित्यमां ये तेनुं ऊंचुं स्थान छे । ते बारमी शताब्दीथी पिंगळशास्त्रना सर्वाश्लेषी अने सुव्यवस्थित ग्रंथ लेखे घणो उपयोगी अने प्रभावक रह्यो छे । अहीं हुं तेना प्राकृत-अपभ्रंश-विभागनी चर्चा करीश अने तेनां पण अनेक महत्त्वनां पासांओमांथी थोडांकनां ज विवरण अने समीक्षानो समावेश थई शकशे । २. ईसवी सन पूर्वे लगभग पांचमी शताब्दीथी प्राकृतमां औपदेशिक अने पछीथी काव्यनाटकनुं पद्यसाहित्य खेडातुं रघु छ । ईसवी पांचमी-छट्ठी शताब्दीथी अपभ्रंश पद्यसाहित्यनो उदय थयो छे । ए पाकृत-अपभ्रंश साहित्यना विविध प्रकारोमा विविध छंदो प्रयोजाता हता, एटले सर्जको अने भावकोना उपयोग माटे छंदोग्रंथ रचवानी प्रणाली स्थपाई होय ए स्वाभाविक छ । पहेलीबीजी शताब्दी लगभग प्रतिष्ठानना राजा सातवाहन (के हाल) द्वारा कोईक प्राकृत छंदःशास्त्रमा रचायुं होवाना थोडाक संकेत मळे छे । ते पछी दक्षिणना जनाश्रयना १. 'हैमवाङ्मय-विमर्श' (१९९०) पृ. ३१६-१२१ पर प्रकाशित अहीं पुनर्मुद्रित. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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