Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

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Page 7
________________ ६ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ जिल्लेमें कितनेक भोले श्रावकोंके मनमें स्वकपोलकल्पितमतरुप भूतका प्रवेश कराय दीया है । ये यती संवत् १९४० की सालमें गुजरात देशका सहेर अमदावादमें चोमासा करणेंकों आये, जब मुनि श्रीआत्मारामजीका चोमासाभी अहमदावादमें हुआ था। (२) तिस वखत रत्नविजयजीने एक पत्रमें कितनेक प्रश्न लिखके श्रीमन्नगरशेठजी प्रेमाभाइ योग्य भेजे वो पत्र नगर शेठजीने मुनि श्रीआत्मारामजीके पास भेजा उनोने बांचा परंतु वो पत्र अच्छीतरे शुद्ध लखा हुआ नही था, इस वास्ते महाराजने पीछा शेठजीकों दे दीया और शेठजीकों कहाके आप रत्नविजयजीकों कहना के तीन थुइके निर्णयवास्ते हमारे साथ सभा करो । तब श्रीमन्नगरशेठ प्रेमाभाइजीने रत्नविजयजीकों सभा करनेके वास्ते कहला भेजा, जब रत्नविजय, धनविजयजी यह दोनो नगरशेठके वंडे में आकर शेठजीकों कह गये के हम सभा नही करेंगे। कितनेक दिनो पीछे मेवाडदेशमें सादडी, राणकपुर और शिवगंजादि स्थानोसें पत्र आये, तिसमें ऐसा लेख आया के अहमदावादमें सभा हुइ तिसमें "रत्नविजयजी जीत्या और आत्मारामजी हार्या," ऐसी अफवा सुनके नगरशेठजीने सर्व संघ एकठा करके तिनकी सम्मतसें एक पत्र छपवाय कर बहोत गामो के श्रावकोंको भेज दीया तिसकी नकल यहां लिखते है। (३) "एतान् श्री अहमदावादथी ली० शेठ प्रेमाभाइ हेमाभाइ तथा शेठ हठीचंद केसरीसंघ तथा शेठ जयसिंघभाइ हठीसंघ तथा शेठ करमचंद प्रेमचंद तथा शेठ भगुभाइ प्रेमचंद वगैरे संघसमस्तना प्रणाम वांचवा. विशेष लखवा कारण ए छे जे अत्रे चोमासुं मुनि श्रीआत्मारामजी महाराज रहेला छे तथा मुनि राजेंद्रसूरि पण रहेला छे, ते तमो वगैरे घणा देशावरवाला जाणो छो. मुनि आत्मारामजी महाराज चार थोयो प्रतिक्रमणमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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