________________ 10 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बारहवें दिन नामकरण संस्कार बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। सभी सभ्यों और स्वजनों की उपस्थिति में राजा ने अपने प्रिय पुत्र का नाम स्वप्न के अनुसार 'चंद्रकुमार' रखा। माता-पिता और सभी नगरजनों का प्रेमपात्र बना हुआ सबका दुलारा चंद्रकुमार शुक्लपक्ष के चंद्रमा के समान रूप, बल, तेज, उम्र, बुद्धि और गुणों में बढने लगा। रात्रि का दीपक चंद्र है, प्रभात का दीपक सूर्य है, त्रिभुवन का दीपक भी सूर्य है तो कुल का दीपक सुपुत्र है। ऐसा ही कुलदीपक पुण्यवान और गुणवान् चंद्रकुमार जहाँ सभी नगरजनों के मन और नयनों को आनंद देता था, वहाँ रानी वोरमती के लिए तो द्वेषरूपी अग्नि में घी की आहुति ही डालता जा रहा था। इधर राजा वीरसेन अपने सर्वगुणसंपन्न सुपुत्र को देखकर अपना जीवन सार्थक मानता था। राजा वीरसेन और रानी चंद्रावती रातदिन अपने प्रिय चंद्रकुमार का लालन-पालन अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय मान कर कर रहे थे। मनुष्य के मन में जिसके प्रति प्रेम होता है उसके सुख को और उसकी रक्षा की चिंता मनुष्य नित्य करता ही रहता है। ___ बाल चंद्रकुमार अपनी विविध बालक्रिडाओं से और तुतली बोली के मीठे बोलों से अपने माता पिता के चित्त को आनंद से भर रहा था। नगरी में एकमात्र वीरमती ही ऐसी स्त्री थी जिसका हृदय चंद्रकुमार को देख कर ईर्ष्या से जल-जल उठता था। रानी चंद्रावती अपनी बाल्यावस्था से ही जैन धर्मरागिनी थी। इसलिए उसने अनेक युक्तियों से और प्रेमपूर्ण बातों से राजा को सात व्यसनों से मुक्त कर दिया। रानी की निरंतर संगति में रहने से राजा के हृदय में जैन धर्म के प्रति अत्यंत अनुराग और श्रद्धा का भाव जाग उठा। राजा-रानी दोनों जैन धर्म का निष्ठा से पालन करते हुए अपने मनुष्य जन्म को सार्थक कर रहे थे। पुण्यशम् जीव जिनेश्वरदेव की पूजा, संध की सेवा, तीर्थयात्रा और वंदना, जिनवाणी का श्रवण, सुपात्र में दान और जीवदया का पालन कर के अपने मनुष्य जन्म को सफल बना लेते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust