Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 12
________________ arrassespek SoSo Voodoo ॐ ब्रह्मविलास में ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ककककक . तन यौवन कंचन औ मंदिर, राजरिद्ध प्रभुता पद काह । ये उपजै विनरौ अपनी थिति, तूं कित नाथ होंहि शठ! ताह ॥ १८ ॥ कवित्त, संसारी जीवनके करमनको बंध होय, मोहको निमित्त पाय रागद्वेषरंगसों । वीतराग देव ै न रागद्वेष मोह कहूं, ताहीतें अबंध कहे कर्मके प्रसंगसों ॥ पुग्गलकी क्रिया रही पुग्गलके खेतवीचि, आपहीतें चलै धुनि अपनी उमंगसों । जैसें मेघ परे विनु आपनिज काज करें, गर्जि वर्षि झूम आवे शकति सु छंगसों ॥ १९ ॥ ' मात्रिक कवित्त. आतमसूवा भरममहिं भूल्यो, कर्म नलिनपैं बैठो आय । विषयस्वादविरम्यों इह थानक, लटक्यो तरें ऊर्द्धभये पाँय ॥ पकरै मोहमगन चुंगलसों, कहै कर्मसों नाहिं बसाय | देखहु किन ? सुविचार भविक जन, जगत जीव यह धेरै स्वभाय २० तोलों प्रगट पूज्यपद यिर है, तोलों सुजस लहै परकास । तोलौँ उज्जल गुणमणि स्वच्छित, तोलों तपनिर्मलता पास ॥ तोलों धर्मवचनमुख शोभत, मुनिपद ऐसे गुनहिं निवास । जोलों रागसहित नहिं देखत, भामनिको मुखचंदविलास ॥ २१ ॥ कवित्त. जोपें चारों वेद पढे रचिपचि रीझ रीझ, पंडितकी कला में प्रवीन तू कहायो है । धरम व्योहार ग्रन्थ ताहूके अनेक भेद, ताके पढे निपुण प्रसिद्ध तोहि गायो है | आतमके तत्त्वको निमित्त कहूं रंच पायो, तोलों तोहि ग्रन्थनिमें ऐसे के बतायो है । Peera Jagan son deva

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