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समर्पण
जिन्होंने अपना तन-मन-धन और सारा जीवन जैन पुरातत्त्व, साहित्य, संस्कृति और कला के संग्रह, संरक्षण, उन्नयन और प्रकाशन में लगा दिया और जिनके आन्तरिक प्रेम, सहयोग और सौहार्द ने हमें निरन्तर सरस्वती-उपासना की सत्प्रेरणा दी उन्हीं श्रदय स्वनामधन्य स्वगीय बाबू पूरणचन्दजी नाहर की पवित्र स्मृति में सादर समर्पित
अगरचन्द नाहटा भँवरलाल नाहटा
"Aho Shrut Gyanam"