Book Title: Bhuvaneshvari Mahastotram
Author(s): Jinvijay, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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(१०) मन्त्र' शब्द का पूर्वार्द्ध मन अथवा मनन से सम्बद्ध है और उत्तरार्द्ध "" .. का अर्थ है त्राण । तात्पर्य यह है कि मन्त्र मनन के . द्वारा संसार अथवा भौतिक जगत् से जीव की रक्षा करता है, उसे मुक्त करता है और जीवन के समस्त सिद्धिभूत चतुर्वर्ग का आमन्त्रण करता है।
मन्त्र अक्षरों से बनते हैं। अक्षर, उनके तत्तत् समुदाय और शब्द सभी ब्रह्म के व्यक्त रूप हैं, क्रियात्मिका शक्ति के विविध स्वरूप हैं। मुख से उच्चारित, कानों से श्रत और मस्तिष्क से समझे हुए सभी शब्द इसके रूप हैं। परन्तु जो मन्त्र पूजा और साधना में प्रयुक्त होते हैं, वे विशिष्ट ध्वनियाँ हैं जो सम्बद्ध देवता के स्वरूप को व्यक्त
क, मनन विश्वविज्ञान त्राणं संसारबन्धनात् । ___ यतः करोति संसिद्धो मन्त्र इत्युच्यते ततः ॥ पिङ्गलामते ॥
ख. मननात् त्राणनाच्चैव मद्रूपस्यावबोधनात् । ___मन्त्र इत्युच्यते सग्यङ् मदधिष्टानतः प्रिये ।। रुद्रयामले ।।
ग. वर्णात्मकाः शब्दा नित्याः । मन्त्राणामचिन्त्यशक्तिता । तन्त्रमते ।। घ, मननात तत्वरूपस्य देवस्यामिततेजसः ।
त्रायते सर्वभयतः तस्मान् मन्त्र इतीरितः ।। कुलार्णवतन्त्रे १७ ॥ ङ. मन्नि गुप्तभापणे घज अच वा । वेदभेदः । “प्रनून ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं ___ वदत्युक्थम् ।" ऋग्वेदः ६७१४७४ । । च, गायत्रीतन्त्रे । 7. “Words are not mere sounds as they ordinarily
seem to be. They have a subtle and intellectual form within. The internal source from which they evolve is calm and serene, eternal and imperishable. The real form of Vak, as opposed to external sound, lies far beyond the range of ordinary perception. It requires a great deal of साधना to have a glimpse of the purest form of speech. The ऋक् to which पतञ्जलि has refered bears strong evidence to this fact. 779 is said to reveal her divine self only to those who are so trained as to.. undestand the real nature............" Spiritual Outlook of Sanskrit Grammar by P.C. Chakravarti. ( Journal of the Department of Letters, Calcutta, 1934.):