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(५) चित्रों की दृष्टि से भी यह विज्ञप्तिपत्र मूल्यवान् है। इसमें उदयपुर के तत्कालीन महाराणा का चित्र चार बार आया है-(१) पोछोला तालाव के नौका-विहार में, जिसमें वे खास मुसाहबों के साथ विराजमान हैं. (२) पाकशाला में, (३) दरीखाने में, उमराव सहित, (४) हाथी पर हौदे में, सेना एवं अंग्रेजों के प्रतिनिधि काप साहब के साथ । दिल्ली दरवाजे के बाह्यवर्ती दादावाड़ी में सूरि महाराज बहुत से श्रावकों से परिवृत दिखाए गये हैं । तत्कालीन स्थान और दृश्य सूक्ष्म ब्यौरे के साथ दिखाए गए हैं।
सर्वप्रथम बेल-पत्तियों से आवृत्त पुष्पों का गमला है जिसके उभय पक्ष में शुक अवस्थित हैं। फिर मंगलकलश, युगल चामरधारी युक्त शय्यासनोंके तीन चित्र तथा तीर्थंकर माता के चतुर्दश स्वप्न (गज. वृषभ, सिंह.लक्ष्मी, पुष्प ला.चंद्र, सूर्य,ध्वज,पूर्णकलश, सरोवर, क्षीरसमुद्र, देवविमान, रत्नराशि, निधूम अग्नि), परिचारिका-चतुष्क सहित शय्यासन-सुप्त तीर्थकर-माता. जिन-मंदिर, एवं अष्टमांगलीक ( दर्पण. भद्रासन, नंद्यावर्त, कलश, मत्स्ययुगल, शराव-संपुट, श्रीवत्स, स्वस्तिक ) के जैन चित्रकला संबंधी चित्र १४| फुट की लम्बाई में विविध रंगों में चारों ओर बेल-पत्तियों के चित्र सहित अंकित हैं।
स्थानों के चित्र ७ फुट १० इच की लंबाई में फैले हैं । तदनंतर राजप्रासादों के चित्र प्रारंभ होते हैं । जिन स्थानों के नीचे चित्रकार ने नामोल्लेख किया है उनका ब्यौरा इस प्रकार है
महाराणा रसोईघर में विराज रहे हैं ( 'रसोड़ विरा- . ज्या दरबार'), दाहिनी ओर दमामः वाणनाथ जी के मंदिर में दरवार प्रातःकालीन पूजन कर रहे हैं: सूर्य गौखड़ा ( गवाक्ष ), जनानी पोल, तोरण पोल, जनानी ड्योढ़ी, मोती महल, चीनी गोखड़ा. अमर म(होल । फिर लिखा है-'बड़े दरीखाना री बैठक विराज्या उमराव १६ पासवान नीज सूधी। इसमें महाराणा के समक्ष आठ व्यक्ति वैठे हैं. चार व्यक्ति पृष्ठ भाग में खड़े हैं और आठ उमरराव बैठे हुए हैं। इसके आगे दस व्यक्ति खड़े हैं तथा चार स्त्रियाँ बैठी हुई हैं । खुले चौक में घुड़सवार घोडे फेर रहे हैं। हाथी और सेना भी उपस्थित है । मध्य में स्थित त्रिपोल्या के उभय पक्ष में ग्यारह द्वारपाल बैठे हैं। बाह्य भाग में दाहिनी ओर घंटाघर है। मध्यवर्ती चौक में घुड़सवार. प्यादे. पालकी.भारवाही मजदूर, काँवरधारी ग्वाले दिखाये गये हैं। फिर बड़ी पोल का द्वार हैं जिसके मध्य में एक पहरेदार खड़ा है और सात बैठे हैं । बाएं किनारे जंजीर में बंधा मदोन्मत्त हाथ खड़ा है जिसके सामने कोठार है
और दाहिनी ओर धर्मखाते का कोठार है। यह दाहिनी ओर के स्थानों का परिचय हुआ, अब बाँई ओर का विवरण दिया जाता है।
धर्मखाते के कोठार के बाद कई मकानों के चित्र हैं। तदनंतर श्रीकृष्ण जी का शिखरबद्ध मंदिर है जिसमें 'वावायरों मंदिर' लिखा है। फिर कई मकान हैं जिनके गवाक्षों में महिलाए तथा वैठकों में पुरुष बैठे हैं। फिर बाफणों का एवं कसौटी का जैनमन्दिर है। इसके आगे प्रधान गलूडया शिवलाल जी अपने मकान में कई व्यक्तियों के साथ बैठे हैं । तत्पश्चात् बाजार आरम्भ होता है जिसमें दूकानदार अपनी-अपनी दूकानों में बैठ हैं। सर्बप्रथम मारवाड़ी चौक है जिसमें जोरावरमलजी की दूकान, पन्नालालजी
इसके पश्चात् उदयपुर नगर के ऐतिहासिक चित्र हैं। सर्वप्रथम पीछोला तालाब है जिसमें मीन, मकर, कच्छप, कमल एवं तैरती हुई नौकाएं चित्रित हैं। इसके उभय पक्ष में जंगल-पहाड़ है । वाम पार्श्व में सीतादेरी तथा बैजनाथ के देवालय हैं । तालाब के मध्य में वाटिका के बीच जगमंदिर, जगनिवास, महाराणा का नौका-विहार ('मीजलस की असवारी नाव की दरवार' ) तथा 'मोहनमंदिर के चित्र हैं । दाहिनी ओर वृक्षों के बीच शिवालय, बड़ीपाल ( घाट ). भीमनिवास, नजरबाग और रूपघाट तथा बाँयीं ओर तीन शिवालय, जिनमें एक का नाम भीमपदमेसर लिखा है और अमरकुण्ड आदि चित्रित हैं। यहाँ तक तालाब और उसके उभय पक्ष में स्थित
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