Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 444
________________ महाराणा अडसीजी ने जो बाहर से सिन्धियों की बड़ी स्वामिनी बनकर दुःख, क्लेश और चिन्ताएँ ही देखी हैं। फौज बुलाकर रखी थी, वह सम्भल नहीं रही थी। उसका मैं तो चाहती हूँ कि मेरा बेटा इन प्रपंचों से दूर ही रहे । खर्च निभाना मेवाड़ राज्य की शक्ति के बाहर की बात राजा बनने की अपेक्षा एक साधारण मनुष्य ज्यादा सुखी थी। सिन्धी सिपाही महलों पर धरना दिये बैठे थे। रहता है। लोगों ने जनानी ड्योढ़ी पर जाकर अर्ज सरदार प्रधान लोग समझा रहे थे परन्तु सिन्धी मानते न करवाई-'आप ऐसा करके तो अपने इकलौते बेटे के जीवन थे। रामप्यारी उत्तर-प्रत्युत्तर करती दिन में जनाने से को और ज्यादा खतरे में डालेंगी। गद्दी पर बैठने वाला बाहर ड्योढ़ी तक पचासों चक्कर लगाती। चालीस दिन गद्दी के उत्तराधिकारी का जीवित रहना कैसे पसन्द तक धरना तथा समझाना-बुझाना चलता रहा। अन्त में करेगा ?' बाईजीराज ने कुरावडु के रावतअजुनसिंह जी चूंडावत को भीमसिंहजी साढे नौ वर्ष की आय में गद्दी पर बैठे। बुलाया। उनके समझाने पर सिन्धी माने, पर इस शर्त राज्य की शासन डोर चूंडावतों के हाथ में थी। शत्काके साथ जब तक रुपयों का प्रबन्ध हो, हमारी ओल में वतों और चंडावतों का आपस का द्वेष था ही। शत्कावतों किसी को रखा जाय। 'ओल' का अर्थ होता था कि के नेता भीडर के रावत मोहकम सिंहजी रुष्ट होकर भीडर शिष्ट व्यक्ति को उनके सुपुर्द कर दिया जावे। रामप्यारी जाथे। राज्य का कार्य अर्जन सिंह चंडावत की ने आकर बाईजीराज से सिन्धियों की शर्त कही। बाईजी सलाह से मुसाहिब लोग चला रहे थे। राज झालाजी विचार में पड़ गई। ओल में किसी को रखे बिना कोई चारा नहीं। परन्तु किस व्यक्ति को रखा र बाईजीराज की आज्ञा से रामप्यारी ने जाकर मुसाजाय ? उस समय उनके पास ही उनके ६ साल के हिबा से कहा, 'महाराणा साहिब की जन्मगांठ आई है। छोटे पुत्र भीमसिंह जी बैठे थे। वे एकदम बोल उठे- उसे मनाने के लिये खचे का प्रबन्ध करो।' परन्तु मुसा'मुझे ओल में भेज दो।' इतना सुनते ही बाइजीराज का हिवों ने मना कर दिया कि रुपये नहीं हैं और प्रबन्ध नहीं स्नेह उमड़ा और नेत्र दुःख के आँसुओं से गीले हो गये। हा सकता। मुसाहिबा सा हो सकती। मुसाहिबों का ऐसा उत्तर सुनकर रामप्यारी उन्होने प्यार से बेटे को छाती से लगा लिया। रामप्यारी बोली, 'रुपयों का प्रबन्ध तुम्हें करना पड़ेगा। यदि प्रबन्ध ने भीमसिंहजी को गोदी में उठाकर सिन्धियों को सौंप नहीं कर सकते तो मुसाहिबी क्यों करते हो?' इस पर दिया। अर्जनसिंहजी भी साथ हो गये। दो वर्ष तक किसी ने कहा, 'हम तो नहीं कर सकते, तू कर ले।' सिन्धियों ने भीमसिंहजी तथा अर्जनसिंहजी को अपनी रामप्यारी बड़ी जबानदराज थी और बाईजीराज उसको ओल में रखा। मानती थी। वह बोली 'तुम्हारे भरोसे मुसाहिबी नहीं पड़ी है। यहाँ राज्य में काम करने वालों की कमी नहीं भीमसिंहजी के ओल में से लौटने के थोड़े दिन बाद है। तुम चंडावतों की ताकत पर भूल रहे हो। जाकर महाराणा हमीर सिंहजी का कम उम्र में देहान्त हो गया। कह देना रावत अजन सिंह जी को कि वर्षगांठ मनाई भीमसिंहजी मेवाड़ की गद्दी के उत्तराधिकारी थे। पर जाएगी और रुपयों का प्रबन्ध करना पड़ेगा। अगर बाईजीराज इन्हें गद्दी पर बेठाने से इन्कार कर गई। उनसे नहीं होता है तो काम छोड दें। बाईजीराज ने कहा, मुझे राज्य नहीं चाहिये। मैं अपने बेटे की कुशलता में ही खुश हैं। इस राज्य के लिये मेरे जनानी ड्योढ़ी पर एक अहलकार सोमचन्द गान्धी पति मारे गये। खिलती जवानी में मेरा लड़का षड्यन्त्रों नामक व्यक्ति रहता था। उसने समय को आँका और का शिकार हुआ, दुष्टों ने उसे जहर दिया। मुझे राज्य रामप्यारी से कहने लगा, 'अर्जुन सिंहजी को बाईजीराज से नफरत हो गयी है। राज्य के लालच में इन्सान में बड़ा योग्य समझती हैं। अगर मुझे प्रधानगी सौंपे तो मैं इन्सानियत नहीं रहती। वहाँ रात-दिन षड़यन्त्र, कुचक्र सारा प्रबन्ध कर दिखाऊँ।' और धोखे-बाजी के सिवाय कुछ नहीं। मैंने राज्य की बाईजीराज चिढ़ी हुई तो थी ही, रामप्यारी ने उन्हें E६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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