Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 443
________________ कर काम किया जाता था। खास-खास व्यक्तियों से खास-खास काम की बात करने के लिये बीच में पर्दा टांग कर बात कर ली जाती थी। साधारण काम-काज के लिये जनानी ड्योढ़ी पर सरदार, प्रधान आदि आते और डावड़ी ( दासी) के साथ उत्तर-प्रत्युत्तर कहला दिया जाता। बाईजीराज सरदारकंअर की दासी बड़ी चतुर थी। वह उत्तर-प्रत्युत्तर का काम बड़ी खूबी से करती थी। काम-काज करते-करते वह इतनी होशियार हो गई रामप्यारी का रिसाला थी कि राज्य की नीति और काम-काज में दखल रखने लगी। रामप्यारीबाई की सलाह बाईजीराज झालीजी -लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत मानने लगी। उसका अपना अलग रूतबा जम गया । रामप्यारीबाई का बाकायदा हुकम चलता था। वह लोगों राजस्थान मरहठों की लूट और हमलों से परेशान था। को छुड़वा देती और गिरफ्तार तक करवा लेती। प्रधान मेवाड़ मरहठों से तो दुःखी था ही पर गृह-कलह से उसकी पद पर आरूढ़ अमरचन्द्र सनाढय जैसे योग्य और विशिष्ट वर्बादी और भी बढ़ती जा रही थी। चंडावतों और व्यक्ति को पकड़ने के लिये उसने अपने आदमी भेज दिये शत्कावतों का आपसी वैमनस्य उस समय अपनी चरम और घर लुटवा दिया। यहाँ तक कि एक पूरा रिसाला सीमा पर पहुँच चुका था। रामप्यारीबाई के अधीन था जो उसके हुकम पर चलता - अपने पुत्र हमीरसिंहजी और भीमसिंहजी को बहुत था। वह रामप्यारी का रिसाला कहलाता था। उसके ही कम उमर में छोड़कर महाराणा अड़सीजी स्वर्गवासी हो मर जाने के बाद भी लगभग १०० वर्ष तक रामप्यारी का । गये। ऐसी विषम स्थिति में मेवाड़ राज्य की जिम्मेवारी रिसाला ही कहलाता था। आधुनिक ढंग से फौजों माना ही करना नाबालिग महाराणा की माता झालीजी सरदार कंअर पर को तरतीब दी गई, तब वह उनमें मिलाया गया। उसका आ गई। वे बाईजीराज की गादी पर आसीन थी। मकान रामप्यारी की बाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। कर्नल मेवाड़ राज्य के अन्तःपुर का प्रबन्ध, शासन, परम्परा से टाड शुरू में आये तब उनके रहने के लिये रामप्यारी की चले आते दस्तुर और सांस्कृतिक रीति-रस्म की देखभाल बाड़ी में ही प्रबन्ध किया गया। बाद में उस मकान में करने वाली महिला वाइजीराज कहलाती थी। राज्य सरकारी तोपखाना और मैगजिन रहे। अब उसका कुछ परिवार की योग्य एवं बुजुर्ग महिला को इस पद पर र अंश बोहेड्डा की हवेली कहलाता है। प्रतिष्ठित किया जाता था। इस पद के भार व व्यय के लिये अतिरिक्त खर्च राज्य से उन्हें मिलता था। राज्य तत्कालीन राजनीति में रामप्यारी एक प्रमुख पात्र सम्बन्धी कोई सलाह भी बाईजीराज को देने का अधिकार थी। उस समय गृह-कलह और मरहठों के उपद्रवों से होता था। पर्दे में रहते हुये भी स्त्रियों द्वारा राज्य का मेवाड़ की दशा शोचनीय थी। खजाने में पैसा नहीं था काम सम्भालने की प्रथा मेवाड़ के राजघराने में शुरू से और वेतन न मिलने के कारण सिन्धी फौजों ने आकर है। पुत्र की नाबालिग अवस्था में माता से पूछ महलों पर धरना दे दिया।' चारों ओर चिन्ता छा गई। १ अडसीजी के समय में मेवाड़ी सरदारों के खिलाफ हो जाने से उन्हें बाहर से सेना का प्रबन्ध करना पड़ा। उसी समय सिन्धी, अरबी एवं विलायती फौजों का गठन किया गया। तब से मेवाड़ में सिन्धी, अरबी और बलौच आदि बाहर से आकर बसे हुये हैं। मेवाड़ में सोलह उमरावों के अलावा १७वां उमराव सिन्धी मुसलमान है। इस १७वें उमराव की स्थापना महाराणा अड़सीजी ने ही की थी। हा ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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