Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 448
________________ रहती थी। उसका विचरण क्षेत्र होने से संभवतः यह ढूंढाड़ नाम से यह क्षेत्र लगभग तीन-चार सौ वर्षों से इलाका ढूंढाड़ कहलाया हो। नवजात शिशुओं की मंगल लोक में ज्ञात है। लिखित प्रमाण भी इससे पहले नहीं कामना के लिए ढूंढ पूजने की रीति आज भी इस क्षेत्र में ले जाते। लेकिन इसके नामकरण के बारे में फिर भी प्रचलित है। लेकिन इस मान्यता का कोई ऐतिहासिक यह निरचयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि यह नाम कब आधार नहीं मिलता। और क्यों पड़ा। भाषा विज्ञान की दृष्टि से देखें तो पाते हैं कि ढूंढाड़ दाङ क्षेत्र के नामकरण के पीछे सबसे अधिक युक्तिशब्द राजस्थानी की विभिन्न बोलियों में निर्जन और उजाड़ प्रदेश के अर्थ में अनेकशः आया है। संभवतः संगत और विश्वसनीय बात यह लगती है कि अचरोल के निकटवतीं पहाड़ों से निकलने वाली इस क्षेत्र की प्रमुख वीरान इलाका होने के कारण यहाँ जीवन-यापन करना नदी का नाम ढूंद है। यह नदी इस इलाके के व्यापक दुष्कर रहा हो इसीलिए इसे विविध राक्षसों के विचरण का प्रदेश मानकर अनेक असंगत व निराधार मान्यतायें बना और विस्तृत भू-भाग में बहती है। वह काफी ली गई। पुरानी है और इसका पाट बहुत चौड़ा है। अभी कुछ वर्ष पूर्व १९८१ में ढूंढ नदी में आयी भीषण बाढ़ ने प्रलय गाजर मेवो कांस खड़, मरद ज पून उघाड़ । का केसा ताण्डव किया था। उसकी विनाश लीला ने धै ओझर अस्तरी, अहो घर ढूंढाड़ ॥ इस इलाके के कई सौ गाँवों अर्थात एक बहुत बड़े क्षेत्र को ढूंढाड़ देस राक्षस धरा, दई वास नह दीजिए। प्रभावित किया। बहुत सम्भव है ढूंढ नदी के प्रवाह इस मान्यता में भी ज्यादा दम नहीं है क्योंकि क्षेत्र का बोध कराने की दृष्टि से इस भू-भाग का नाम भौगोलिक दृष्टि से यह इलाका इतना निर्जन और वीरान ढूंढाड़ पड़ गया हो। पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में ढूंढाड़ के .. कभी नहीं रहा। नामकरण का यही सबसे विश्वसनीय कारण लगता है। [ ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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