Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 422
________________ पद्मसुन्दर की एक अज्ञात रचना : यदुसुन्दर - डॉ० सत्यव्रत गवर्नमेण्ट कॉलेज, श्री गंगानगर (राज० ) तपागच्छ के सुविज्ञात आचार्य तथा सम्राट अकबर के आध्यात्मिक मित्र उपाध्याय पद्मसुन्दर का यदुसुन्दरमहाकाव्य उनकी नव प्राप्त कृति है। जैन साहित्य में कालिदास, माघ आदि प्राचीन अग्रणी कवियों के अनुकरण पर अथवा उनकी समस्यापूर्ति के रूप में तो कुछ काव्यों का निर्माण हुआ है, किन्तु यदुसुन्दर एकमात्र ऐसा महाकाव्य है, जिसमें संस्कृत महाकाव्य - परम्परा की महानता एवं तुच्छता के समन्वित प्रतीक, श्रीहर्ष के नैषधचरित को रूपान्तरित ( एडेप्ट ) करने का दुस्साध्य कार्य किया गया है । महान् कृति का रूपान्तरण विष के समान है, जिससे आहत मौलिकता को पाण्डित्यपूर्ण क्रीड़ाओं की संजीवनी से भी पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता । पद्मसुन्दर ने श्रीहर्ष की दृप्त बहुश्रुतता, कृत्रिम भाषा तथा जटिल - दुरूह शैली के कारण वज्रवत् दुर्मेंद्यय नैषधचरित का उपयोगी रूपान्तर प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है किन्तु उसे अनेकशः, अपनी असहायता अथवा नैषध के दुर्धर्ष आकर्षण के कारण काव्य को संक्षेप करने को बाध्य होना पड़ा है जिससे यदुसुन्दर कहीं-कहीं रूपान्तर की अपेक्षा नैषधचरित के लघु संस्करण का आभास देता है । यदुसुन्दर में मथुराधिपति यदुराज समुद्रविजय के अनुज वसुदेव तथा विद्याधर- सुन्दरी कनका के विवाह तथा विवाहोत्तर केलियों का वर्णन है, जो प्रायः सर्वत्र श्रीहर्ष का अनुगामी है । Jain Education International यदुसुन्दर अभी अमुद्रित है । बारह सर्गों के इस महत्त्वपूर्ण काव्य की एकमात्र उपलब्ध हस्तप्रति ( संख्या २८५८, पुण्य ), अहमदाबाद स्थित लालपत भाई दलपत भाई भारतीविद्या संस्थान में सुरक्षित है । प्रस्तुत विवेचन, ५४ पत्रों के इसी पत्रलेख पर आधारित है 1 कवि परिचय तथा रचनाकाल : पद्मसुन्दर उन जैन साधुओं में अग्रगण्य थे, जिनका मुगल सम्राट अकबर से घनिष्ठ सम्बन्ध था । उनकी मैत्री की पुष्टि पद्मसुन्दर के ग्रन्थों से भी होती है । अकबर शाहि शृंगार दर्पण से स्पष्ट है कि अकबर की सभा में पद्मसुन्दर को उसी प्रकार प्रतिष्ठित पद प्राप्त था, जैसे जयराज बावर को मान्य था और आनन्दराय ( सम्भवतः आनन्दमेरु ) हुमायूँ को । हर्षकीतिरचित धातुतरंगिणी के निम्नोक्त उल्लेख के अनुसार पद्मसुन्दर न केवल अकबर की सभा में समादृत थे, उन्हें जोधपुर नरेश मालदेव से भी यथेष्ट सम्मान प्राप्तथा । सम्राट् अकबर ने जो ग्रन्थसंग्रह आचार्य हीरविजय को भेंट किया था, वह उन्हें तपागच्छीय पद्मसुन्दर से प्राप्त हुआ था । उनके दिवंगत होने पर वह ग्रन्थराशि सम्राट् के पास सुरक्षित थी । पद्मसुन्दर के परवर्ती कवि देव विमलगणि ने अपने हीर सौभाग्य में इस घटना तथा उक्त ग्रन्थ राशि में सम्मिलित प्रस्तुत यदुसुन्दर सहित नाना ग्रन्थों का आदरपूर्वक उल्लेख किया है। हीरविजय अकबर से सम्वत् १६३६ में १ शृङ्गारदर्पण, प्रशस्ति, २ । २ (अ) हीरसौभाग्य, १४.६१-६२, ६६ । ( आ ) वही, १४.६६, स्वोपज्ञटीका : काव्यानि कादम्बरी - पद्मानन्द-यदुसुन्दराद्यानि । For Private & Personal Use Only [ ७३ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450