Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 434
________________ मध्यकाल में यह प्रमुख दृष्टांत रहा है। कथा की लौकि कता के कारण इसे अधिक प्रसिद्धि मिली है। हिन्दी संस्करण किसी हिन्दी लेखक ने (६) आरामशोभाकथा को स्वतन्त्र रूप से नहीं लिखा है। किन्तु प्राचीन कथा के आधार पर हिन्दी में उसका संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया है । श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री द्वारा सम्पादित जैन कथा भाग ६६ में आराम शोभाकथा प्रस्तुत की गयी है। कथा सीरिज में भी 'जादुई कुंज' के नाम से प्रस्तुत किया गया है 1 , अमर चित्र इस कथा को कथा के मानक रूप एवं अभिप्राय आरामशोभाकथा एक लोककथा है । अतः इसमें लोकतत्त्वों की भरमार है । इस कथा के मानक रूप इस प्रकार हैं : २. अकेली बालिका पर घर के कार्यों का भार २. सर्प का मनुष्य की वाणी में बोलना ३. कृतज्ञ नागकुमार द्वारा साहस के कार्य के लिये वरदान देना । ४. क्षेत्र के रूप में कुंज का अश्चर्य ५. राजा द्वारा गुणी गरीब कन्या से विवाह ६. सौतेली माता द्वारा सोतेली पुत्री को मारने का प्रयत्न ७. नागकुमार द्वारा अवश्य रूप से सहायता ८. कुँए में ढकेलना किन्तु वहाँ पर भी रक्षा ६. पुत्र जन्म पर माँ को परिवर्तन कर देना १०. असली पत्नी को राजा के द्वारा बाद में पहिचान लेना ११. पुत्र दर्शन के लिये देवता की समय-मर्यादा की शर्त १२. शर्त तोड़ने पर देवता के वरदान का लुप्त होना १३. नायिका द्वारा सौतेली मां एवं बहिन को क्षमा प्रदान करना Jain Education International १४. मुनि से पूर्व जन्म का वृत्तान्तश्रवण १५. पति द्वारा जंगल में छोड़कर चले जाना १६. धर्मं पिता सेठ द्वारा आश्रय देना १७. अपने अतिशय गुणों से धर्मपिता को संकट से बचाना १८. जिनमंदिर निर्माण और जिनपूजा के फलस्वरूप सद्गति १६. कर्मफल शृंखला २०. वर्तमान जीवन की घटनाओं का तालमेल पूर्वजन्म की घटनाओं से बैठाना इन मानकरूपों को देखने से पता चलता है कि १-१३ तक के मानकरूप एक लौकिक कथा के हैं। उनका जैनधर्म से कुछ लेना-देना नहीं है और १४ २० तक के । - मानक रूप किसी भी धर्म के साथ जोड़े जा सकते है। वस्तुतः आरामशोभा कथा में दो कथाबों को एक साथ मिला दिया गया है। परवर्ती कथाओं पर प्रभाव आरामशोभाकथा का मूल अभिप्राय माता - विहीन पुत्री और सौतेली माता का स्वार्थ है। इस अभिप्राय को पूरी तरह व्यक्त करने के लिये कई कथाकारों ने लेखनी चलाई है। सन् १९५० में अपभ्रंश कवि उदयचन्द्र ने 'सुगन्धदशमीकथा' लिखी है। इसकी कथा का उत्तरभाग आरामशोभाकथा से मिलता जुलता है। डा० हीरालाल जैन ने इसकी कुछ समान विशेषताओं की ओर संकेत किया है । सौतेली बेटी की अवहेलना एवं अपनी 40 ९ श्री पुष्कर मुनि, जैन कथा भाग ६६, उदयपुर, १६७६ । , 'जादुई कुंज' मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' के जैन कहानियाँ, भाग १२ में प्रकाशित कथा पर आधारित . है । लेखक ने जैन कहानियाँ में प्रकाशित कथा का उल्लेख नहीं किया है । इसका अंग्रेजी अनुवाद भी Jaina Stories में प्रकाशित है । - संपादक १० जैन, हीरालाल, सुगंधदशमीकथा, ११४०, भूमिका, पृ० १८ For Private & Personal Use Only [ પ્ www.jainelibrary.org

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