Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 438
________________ सम्मिलन कर सके थे। अपनी दुकान में व्यापारी सौदों देखने के साथ ही पहचान जायेगा, क्योंकि पूर्ण आत्मज्ञान की बातचीत करने के तुरन्त पश्चात् वे आध्यात्मिक में न केवल स्वयं का अपितु अन्य के व्यक्तित्व का ज्ञान पाठ, लेखन या चर्चा में सहजता से लीन हो सकते थे। भी स्वतः निहित है। अपनी विरल हिन्दी काव्य-रचना श्रीमद की इस लाक्षणिकता से मुग्ध होकर गांधीजी ने में श्रीमद् ने कहा है : लिखा है कि 'जो लाखों के सौदों की बातचीत करके शीघ्र जब जान्यो निज रूप को, तब जान्यो सब लोक । ही आत्मज्ञान की गहन बातें लिखने में खो जाये उसकी नहि जान्यो जिन रूप को, सब जान्यो सो फोक ।। जाति व्यापारी की न होकर शुद्ध ज्ञानी की ही हो हमारे देश में प्राचीन काल में कई ऋषि, मुनि, साधु सकती है। आदि हो गये हैं जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया था, पर ___ अपनी व्यावसायिक सफलता से श्रीमद ने यह सिद्ध इसके लिए उन्होंने सांसारिक बंधनों को त्यागकर अरण्यकर दिया था कि मनुष्य नीतिमान रहकर भी व्यापार कर वास किया था, जबकि श्रीमद संसार एवं संसार के सकता है। व्यापार-वाणिज्य में प्रचलित अप्रामाणिकता मोहमायारूपी प्रलोभनों के बीच जलकमलवत रहकर के सम्बन्ध में उनका कहना था कि शद्ध आत्मज्ञानी को अर्वाचीन युग में आत्मज्ञान पा सके थे। यही उनकी सबसे ठगना असंभव है। पूर्ण आत्मज्ञानी धोखेबाज व्यक्ति को बड़ी सिद्धि थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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