Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 433
________________ (ग) पुवभवे जं कम सुहासुहं जेण जेण भावेण । संस्कृत संस्करण ___ जीवेण कयं तं चिरं परिणमई तम्मि कालम्मि ॥१३॥ (1) संस्कृत में जिनहर्षसूरि (ई० सन् १४८१), मलय(घ) विहलं जो अबलंबई आवइपडि व जो समुद्धरइ। हंसगणि एवं माणिक्य सुन्दरगणि ने आरामशोभा कथा सरणागयं च रक्खइ तिहिं तिसु अलंकिआ पुहवी।।३६।। लिखी है। यह ज्ञात नहीं हो सका है कि ये संस्करण (ङ) धम्मेण सुह-संपया सुभगया नीरोगया आवया-चतं । प्रकाशित हैं या नहीं। इनकी पाण्ड लिपियां विभिन्न . दीहरभाउअं इह भवे जम्मो सुरम्मे कुले ॥२२३। ग्रन्थ भण्डारों में प्राप्त हैं। संस्कृत के जैन कथा-ग्रन्थों (च) दिव्वरूवमउव्वं जव्यणभरो सती सरीरे जणे। में आरामशोभाकथा का उल्लेख किया गया है। किती होइ सुधम्मओ परभवे सग्गापवरगस्सिरी ॥२२४॥ गुजराती संस्करण (३) आरामशोभाकथा की तीसरी रचना प्राकृत गद्य (५) आरामशोभाकथा गुजराती में भी लिखी गयी में है। हरिभद्रसूरिकृत 'सम्यक्त्वसप्तति' पर संघतिलक ने है। गुजराती के 'आरामशोभारास' की भूमिका में सम्पाई. सन् १३६५ में प्राकृत में वृत्ति लिखी है। इस वृत्ति दकों ने इस कथा की निम्नांकित गुजराती रचनाओं का में आरामशोभा की जो कथा दी गयी है उसका प्रारम्भ उल्लेख किया है : इस प्रकार होता है: (क) आरामशोभारास (राजकीर्ति), ई० सन् १४७६ । ___ इहेव जम्बूरूक्खालं कियदीव मज्झट ठिए अक्खंडछक्खं- (ख) आरामशोभा चौपाई (विनयसमुद्र ), ई. डमंडिए बहुविहसुहनिवह निवासे भारहे वासे असेसलच्छि- सन् १५२७। संनिवेसो अस्थि-कुसट्टदेसो।। (ग) आरामशोभाचरित (पुंज ऋषि ), ई. ___ इस पूरी रचना में ३० प्राकृत एवं संस्कृत के पद्यों सन् १५६६ । का भी प्रयोग हुआ है। अन्त में कहा गया है :५ (घ) आरामशोभा चौपाई ( समय प्रमोद ), ई० आरामसोहाइ चरित्तमेयं निसामिऊणं सवणा भियामं । सन् १६१० के लगभग । कुणेह देवाण गुरुणवेया-वच्चं सया जेण लहेह सुक्खं ॥ (ङ) आरामशोभा चौपाई (राजसिंह ), ई० इस कथा को मूल रूप में डा. राजाराम जैन ने सन् १६३१ । पाइयगज्ज-संगहो नामक अपनी पाठयपुस्तक में प्रकाशित (च) आरामशोभा चौपाई ( दयासार ), ई० किया है। यद्यपि विभिन्न प्रतियों के आधार पर इसका सन् १६४८ । सम्पादन किया जाना शेष है। ला० द० संस्कृति विद्या (छ) आरामशोभारास (जिनहष), ई० सन् १६६० । मंदिर, अहमदाबाद में इस प्राकृत (गद्य) आरामसोहा कथा इस तरह ज्ञात होता है कि आरामशोभाकथा जनकी २ प्रतियां प्राप्त हैं। संख्या-३२६० एवं २५६०। जीवन में बहुत लोकप्रिय रही है। जिनभक्ति के लिये ४ सम्यक्त्व सप्तति ( संघतिलककृतवृत्तिसहित ), सं० ललितविजय मुनि, १६१६ । ५ मुनि यशोभद्र (सं०), आरामसोहाकहा, नेमिविज्ञान ग्रन्थरत्न (३), सूरियपुर, सन् १९४० । ६ (क) जैन ग्रन्थ भण्डार, लींबड़ी, पोथी नं० ७०१ । (ख) श्री जैन संघ भण्डार, पाटण, डव्वा नं० ६, पोथी नं०६। ७ (क) देसाई, जैन साहित्यनी इतिहास, १६३३, पृ० ४७१ । (ख) चौधरी, जी० सी०, जैन साहित्य का वृहत् इतिहास, भाग ६, पृ० ४१७ । ८ कथा मंजूषा (भाग ७)–आरामशोभारास (सं०), जयंत कोठारी एवं कीर्तिका जोशी, अहमदाबाद, १६८३ । ८४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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