Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 385
________________ परिणाम है ।२ प्राचीन साहित्य में शरीर के वर्ण, आणविक आभा और उससे प्रभावित होने वाले विचार इन तीनों अर्थों में लेश्या पर विश्लेषण किया गया है। शरीर का वर्ण और आणविक आभा को द्रव्य लेश्या कहा जाता है और विचार को भाव लेश्या ।४ द्रव्य लेश्या पुद्गल है। पुद्गल होने से वैज्ञानिक साधनों के द्वारा भी उन्हें जाना जा सकता है और प्राणी में योग प्रवृत्ति से होने वाले भावों को भी समझ सकते हैं। द्रव्य लेश्या के पुदगलों पर वर्ण का प्रभाव अधिक होता है। वे पुद्गल कर्म, द्रव्य-कषाय, द्रव्य-मन, द्रव्य-भाषा के पुद्गलों से स्थूल हैं लेश्या : एक विश्लेषण किन्तु औदारिक-शरीर, वे क्रिय-शरीर, शब्द, रूप, रस, -साहित्य वाचस्पति श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री गन्ध आदि से सूक्ष्म हैं। ये पुद्गल आरमा के प्रयोग में आने वाले पुद्गल हैं अतः इन्हें प्रायोगिक पुद्गल कहते लेश्या जैन-दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। हैं। यह सत्य है कि ये पुद्गल आत्मा से नहीं बँधते हैं, जैन-दर्शन के कर्म सिद्धान्त को समझने में लेश्या का किन्तु इनके अभाव में कर्मबन्धन की प्रक्रिया भी नहीं महत्वपूर्ण स्थान है। इस विराट विश्व में प्रत्येक संसारी होती। आत्मा में प्रतिपल प्रतिक्षण होने वाली प्रवृत्ति से सूक्ष्म कर्म आत्मा जिसके सहयोग से कर्म में लिप्त होती है, वह पदगलोंका आकर्षण होता है। जब वे पुद्गल स्निग्धता व लेश्या है। लेश्या का व्यापक दृष्टि से अर्थं करना चाहें तो रुक्षता के कारण आत्मा के साथ एकमेव हो जाते हैं तब इस प्रकार कर सकते हैं कि पुद्गल द्रव्यके संयोग से होने उन्हें जैन दर्शन में 'कर्म' कहा जाता है। वाले जीवके परिणाम और जीवकी विचार शक्ति को प्रभालेश्या एक प्रकार का पौद्गलिक पर्यावरण है । जीव वित करने वाले पुद्गल द्रव्य और संस्थान के हेतुभूत वर्ण से पुद्गल और पुद्गल से जीव प्रभावित होते हैं। जीव और कान्ति । भगवती सूत्र में जीव और अजीव दोनों की को प्रभावित करने वाले पुद्गलों के अनेक समूह हैं । उनने आत्म-परिणति के लिए लेश्या शब्द व्यवहृत हुआ है । से एक समूह का नाम लेश्या है। उत्तराध्ययन की वृहत् जैसे चूना और गोबर से दीवार का लेपन किया जाता है वृत्ति में लेश्या का अर्थ आणविक आभा, कान्ति, प्रभा वैसे ही आत्मा पुण्य-पाप या शुभ और अशुभ कर्मों से और छाया किया है। मूलाराधना में शिवार्य ने लिखा लोपी जाती है अर्थात जिसके द्वारा कर्म आत्मा में लिप्त है 'लेश्या छाया पुद्गलों से प्रभावित होने वाले जीव हो जाते है वह लेश्या है।५ १ बृहद वृत्ति, पत्र ६५०। लेशयति श्लेषयतीवात्मनि जननयननिति लेश्या-अतीव चक्षुराक्षेपिकास्निग्धदीप्त रुपा छाया। २ मूलाराधना, ७/१६०७ । जब बाहिरलेस्साओ, किण्हादीओ ध्वति पुरिसस्स । अब्भन्तरलेस्साओ, तहकिण्हादीय पुरिसस्स ॥ (क) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा ४६४। वपणोदयेण जणिदो सरीरवण्णो दु दव्वदो लेस्सा। सा सोढा किण्हादी अणेयभेया सभेयेण ॥ (ख) उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ५.३६ । ४ उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ५४० । ५ गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा ४८६, ५० स० (प्रा०) १/१४२-३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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