Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 390
________________ डॉ० हर्मन जेकोबी ने लिखा है जेनों के लेश्याओं के है। वस्त्र कम करना और वस्त्रों का पूर्ण त्याग कर देना सिद्धान्त में तथा गोशालक के मानवों को छः विभागों में अभिजातियों की श्रेष्ठता व ज्येष्ठता का कारण है। विभक्त करने वाले सिद्धान्त में समानता है। इस बात अपने प्रधान शिष्य आनन्द से तथागत बुद्ध ने कहाको सर्वप्रथम प्रोफेसर ल्युमेन ने पकड़ा; पर इस सम्बन्ध में मैं भी छः अभिजातियों का प्रतिपादन करता हूँ। है मेरा विश्वास है जैनों ने यह सिद्धान्त आजीविकों से लिया और उसे परिवर्तित कर अपने सिद्धान्तों के साथ समन्वित १ कोई व्यक्ति कृष्णाभिजातिक (नीच कुल में पैदा हुआ) हो और कृष्ण धर्म (पापकृत्य) करता है। कर दिया।२८ प्रो० ल्युमेन तथा डॉ. हर्मन जेकोबी ने मानवों का २ कोई व्यक्ति कृष्णाभिजातिक हो और शुक्ल धर्म करता है। छ: प्रकार का विभाजन गोशालक द्वारा माना है, पर अंगुत्तरनिकाय से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत विभाजन ३ कोई व्यक्ति कृष्णा भिजातिक हो और अकृष्णगोशालकद्वारा नहीं अपितु पूरणकश्यपके द्वारा किया गया अशुका अशक्ल निर्वाण को समुत्पन्न करता है। था।२९ दीघनिकाय में छः तीर्थंकरों का उल्लेख है, ४ कोई व्यक्ति शुक्लाभिजातिक ( उच्च कुल में उनमें पुरणकश्यप भी एक हैं जिन्होने रंगों के समुत्पन्न हुआ) हो तथा शुक्ल धर्म (पुण्य) करता है। आधार पर छ: अभिजातियां निश्चित की थीं। वे इस ५ कोई व्यक्ति शुक्लाभिजातिक हो और कृष्ण धर्म प्रकार हैं करता है। १ कृष्णाभिजाति-क्रूर कर्म करने वाले सौकरिक, ६ कोई व्यक्ति शुक्ला भिजातिक हो और अशुक्लशाकुनिक प्रभृति जीवों का समूह । अकृष्ण निर्वाण को समुत्पन्न करता है।३२ २ नीलाभिजाति-बोद्ध श्रमण और कुछ अन्य कम- प्रस्तुत वर्गीकरण जन्म और कर्म के आधार पर किया वादी, क्रियावादी भिक्षुओं का समूह । गया है। इस वर्गीकरण में चाण्डाल, निषाद आदि जातियों ३ लोहिताभिजाति-एक शाटक निर्ग्रन्थों का समूह। को शुक्ल कहा है। कायिक, वाचिक और मानसिक ४ हरिद्राभिजाति-श्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्र । जो दुश्चरण हैं वे कृष्ण धर्म हैं और उनका जो श्रेष्ठ ५ शुक्ला भिजाति-आजीवक श्रमण-श्रमणियों का आचरण है वह शुक्ल धर्म है पर निर्वाण न कृष्ण है, न समूह । शुक्ल है। ६ परम शुक्लाभिजाति-आजीवक आचार्य, नन्द, इस वर्गीकरण का उद्देश्य है नीच जाति में समुत्पन्न वत्स, कृष, सांस्कृत्य मस्करी गोशालक प्रभृति का व्यक्ति भी शुक्ल धर्म कर सकता है और उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी कृष्णधर्म करता है। धर्म और निर्वाण आनन्द की जिज्ञासा पर तथागत बुद्ध ने कहा--ये का सम्बन्ध जाति से नहीं है। छः अभिजातियाँ अव्यक्त व्यक्ति द्वारा किया हुआ प्रति- प्रस्तुत विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि पूरणकश्यप पादन है। प्रस्तुत वर्गीकरण का मूल आधार अचेलता और तथागत बुद्ध ने छः अभिजातियों का जो वर्गीकरण २८ Sacred Books of the East, Vol. XLV, Introduction p.xxx. २९ अंगुत्तरनिकाय, ६-६-३, भाग ३, पृ०६३ । ३० दीघनिकाय, १/२, पृ०१६, २० । ३१ अंगुत्तरनिकाय, ६/६/३, भाग ३, पृ० ३५, ६३-६४ | ३२ (क) अंगुत्तरनिकाय, ६/६/३, भाग ३, पृ० ६३-६४ । (ख) दीघनिकाय, ३/१०, पृ० २२५ । समूह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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