Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 394
________________ नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। इन विकिरणों नील और कापोत लेश्याएं तीन कर्म-बन्धन में सहयोगी में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि क्रमशः इन रंगों में व प्राणी को भौतिक पदार्थों में लिप्त रखती हैं। ये आवृत्ति ( frequency ) कम होती है और तरंग दैर्ध्य लेश्याएं आत्मा के प्रतिकूल हैं, अतः इन्हें आगम-साहित्य ( wave length ) में अभिवृद्धि होती है। बैगनी रंग में अशुभ व अधर्म लेश्याएं कहा गया है और इनसे तीव्र के पीछे की विकिरणों को परा बेगनी (ultra-violet) कर्म-बन्धन होता है। और लाल रंग के आगे की विकिरणों को अवरक्त (infra उसके पश्चात की विकिरणों की तरंगें अधिक लम्बी red) कही जाती हैं । प्रस्तुत वर्गीकरण में वर्ण की मुख्यता होती हैं और उनमें आवृत्ति कम होती है। इसी तरह तेजो, है। किन्तु जितनी विकिरणें हैं उनके लक्षण, आवृत्ति और तरंग दैर्ध्य हैं। पद्म व शुक्ल लेश्याएँ तीघ्र कर्म बन्धन नहीं करती। इनमें विचार, शुभ और शुभतर होते चले जाते हैं । इन तीन विज्ञान के आलोक में जब हम लेश्या पर चिन्तन लेश्या वाले जीवों में क्रमशः अधिक निर्मलता आती है । करते हैं तो सूर्य के प्रकाश की भांति यह स्पष्ट होता है इसलिए ये तीन लेश्याए शुभ हैं और इन्हें धर्म-लेश्याएं कि छः लेश्याओं के वर्ण और दृष्टिगोचर होने वाले कहा गया है ! वर्ण-पट spectrum के रंगों की तुलना इस प्रकार की उपयुक्त पंक्तियों में हमने जो विकिरणों के साथ जा सकती है तुलना की है वह स्थूल रूप से है। तथापि इतना स्पष्ट दिखायी दिया जाने वाला वर्ण-पट लेश्या है कि लेश्या के लक्षणों में वर्ण की प्रधानता है। विकिरणों (१) परा बैगनी से बैगनी तक कृष्ण लेश्या में आवृत्ति और तरंग की लम्बाई होती है। विचारों में (२) नीला नीललेश्या जितने अधिक संकल्प-विकल्प के द्वारा आवर्त होंगे वे (३) आकाश सदृश नीला कापोतलेश्या उतने ही अधिक आत्मा के लिए अहितकर होंगे। एतदर्थ - (४) पीला तेजोलेश्या ध्यान और उपयोग व साधना के द्वारा विचारों को स्थिर (५) लाल पद्मलेश्या करने का प्रयास किया जाता है। (६) अवरक्त तथा आगे की विकिरणें शुक्ललेश्या हम पूर्व ही बता चुके हैं कि लेश्याओं का विभाजन डॉ. महावीर राज गेलड़ा ने 'लेश्याः एक विवेचन' रंग के आधार पर किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे शीर्षक लेख४३ में जो चार्ट दिया है उसमें उन्होंने के आस-पास एक प्रभा-मण्डल विनिर्मित होता है जिसे वर्ण के स्थान पर पाँच ही वर्ण लिये हैं, हरा व नारंगी 'ओरा' कहते हैं। वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के कैमरे वर्ण छोड़ दिये हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में तेजोलेश्या का निर्माण किये हैं जिनमें प्रभा-मण्डल के चित्र भी लिये जा रंग हिंगुल की तरह रक्त लिखा है और पद्मलेश्या का रंग सकते हैं। प्रभा-मण्डल के चित्र से उस व्यक्ति के अन्तहरिताल की तरह पीत लिखा है। किन्तु डॉ० गेलड़ा ने निस में चल रहे विचारों का सहज पता लग सकता है। तेजोलेश्या को पीले वर्ण वाली और पद्म लेश्या को लाल यदि किसी व्यक्ति के आस-पास कृष्ण आभा है फिर वर्ण वाली माना है, वह आगम की दृष्टि से उचित नहीं भले ही वह व्यक्ति लच्छेदार भाषा में धार्मिक-दार्शनिक है। लाल के बाद आगमकार ने पीत का उल्लेख क्यों चर्चा करे तथापि काले रंग की वह प्रभा उसके चित्त की किया है इस सम्बन्ध में हम आगे की पंक्तियों में विचार कालिमा की स्पष्ट सूचना देती है। भगवान महावीर. करेंगे। तथागत बुद्ध, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कर्मयोगी श्रीकृष्ण, .. तीन जो प्रारम्भिक विकिरणें हैं, वे लघुतरंग वाली प्रेममूर्ति क्राइस्ट आदि विश्व के जितने भी विशिष्ट और पुन:-पुनः आवृत्ति वाली होती हैं। इसी तरह कृष्ण, महापुरुष हैं उनके चेहरों के आसपास चित्रों में प्रभामण्डल ४३ देखिए° पूज्य प्रवर्तक श्री अंबालालजी म० अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २५२ । [ ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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