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है। आचार्य ज्ञानविमलसूरि और गीतार्थ क्षमाविजयजो श्रीमद् देवचंद्रजी का बड़ा आदर करते थे। श्री उत्तमविजयजी, पद्मविजयजी, विवेकविजयजी आदि अनेक बड़े-बड़े ग.तार्थ उनके छात्र रहे हैं. उनकी शिष्यों की भाँति सेवा की है। वे गच्छ विवाद से ऊँचे उठे हुए महापुरुष थे। तपागच्छीय योगिराज मणिचंद्रजी के समक्ष श्रीमद् देवचन्द्रजी को महाविदेह में केवलज्ञान उत्पन्न होने की और उनके उत्सव में शामिल होने की घटना एक देव ने सुनाई थी।
कारक मं । शिवचंद जी पुत्र हर्षचंद्र युतेन श्रीशत्रुजयोपरि चैत्योद्धार कारितं श्री पार्श्व बिंबं स्थापितं खरतरगच्छे श्री जिनचंदसूरि विजयराज्ये तथा प्रतिष्ठितं च महोपाध्याय श्री राजसागर जी तत्शिष्य उ० श्री ज्ञानधर्मजी तत्शिष्य उ० श्री दीपचंदजी तत्शिष्य संवेग मार्गानगी श्रे शबंजय गिरनार आबू प्रमुख चैत्य प्रतिष्ठा कारक पंडित देवचंद्रण डूंगरवाल सा भैरव वाप्त (? दास ) सा किसनदासौज सहायात् श्री जैतारण वास्तव्य पुर धरणा लि० सेवग किशोरदास बीकानेरीया । शुभं भवतु ।। श्री नेमिनाथ बिंब स्थापितं ॥"
इससे ज्ञात होता है कि श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज के उपदेश से गुजरात, राजस्थान आदि के संघ का जीर्णोद्धार कार्यों में पूर्ण सहयोग था। गुजरात, अहमदाबाद के सूबेदार श्री रतनसिंहजी भंडारी निर्मापित मंदिर की प्रतिष्ठा तपगच्छी शुभविजय के कर कमलों से हुई थी। सूरत के कल्याणचंद्र के पुत्र सोमचंद्र ने सं० १७८८ में जो बिमलवसही में हजारों के व्यय से समवशरण बनवा कर तपागच्छीय आचार्य महाराज सुमतिसागरसूरि से प्रतिष्ठा कराई उसके अभिलेख में "श्रीमत्खरतरगच्छीय उपाध्याय दीपचंद्र शिष्य पं० देवचंद्र मुखात् श्री विशेषावश्यक वृत्तिगत गणधर स्थापन समोसरण विधि श्रवणात् संजात् हर्षेन श्री १०५ श्री महावीर जिन चैत्य समवशरणाकारकारित" आदि वाक्य लिखने में अपना गौरव समझा है।
जैन शासन के स्तंभ रूप अनेक महापुरुषों ने उनके वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में केवली अवस्था में विचरने का वृत्तान्त प्रामाणिक माना है। उनका वास्तविक मूल्याङ्कन आज से ७० वर्ष पूर्व किया था १०५ ग्रन्थों के रचयिता महापुरुष योगनिष्ठ आचार्य देव श्री बुद्धिसागर सूरिजी ने। उन्होंने दीक्षा लेने से पूर्व श्रीमद् देवचन्द्र कृत आगमसार को १०० बार पढ़ा था और दीक्षा लेकर उनके समस्त ग्रन्थों को, जीवनी को प्रकाश में लाने का भागीरथ प्रयत्न किया। २५ संस्कृत श्लोकों में उनकी स्तुति और पद लिखे। उनके उपदेश से अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा ने उनका साहित्य प्रकाशित किया। उसी प्रभाव से पादरा की लषभग ३० साध्वियाँ दीक्षित हुई खरतरगच्छ में प्रवत्तिनीजी श्री वल्लभ श्री जी और प्रवत्तिनीजी श्री विचक्षण श्रीजी के पास। श्री मोहनलाल हीमचंद वकील, मणिलाल मोहनलाल पादराकर, साहित्य महारथी मोहनलाल दलीचंद देशाई, नागकुमार मकाती, शतावधानी धीरजलाल टोकरसी शाह, पं० सुखलालजी स्वामी ऋषभदासजी ( मद्रास ), उमरावचंद जी जरगड़ उनके भक्तों ने बहुत कुछ लिखा है। योगीन्द्र युगप्रधान सद्गुरु श्री सहजानंदघनजी महाराज (भद्रमुनिजी) और गणिवर्य श्री बुद्धिमुनजी महाराज ने भी बड़ी प्रेरणा दी और गुरुदेव ने उनका साहित्य स्वयं संशोधन कर देना स्वीकार किया था। मैंने पूरी प्रेस कापियाँ तैयार की पर
श्रीमद् देवचंद्रजी के उत्तरार्द्ध जीवन का कार्यक्षेत्र गुजरात ही रहा है। उनके एक पूर्व के ज्ञानी होने की गुजरात में प्रसिद्धि है जिसका उल्लेख मस्त योगी छोटे आनंदघनजी नाम से प्रसिद्ध श्रीमद् ज्ञानसारजी ने किया है। वे लिखते हैं "आनंदघनजी टंकशाली, जिनराजसूरि बाबा अबध्यवचनी यशोविजयजी टानरटनरिया, देवचंदजी गटरपटरिया-एक पूर्व के ज्ञानी, मोहनविजयजी लटकाला आदि कहावत गुजरात में प्रसिद्ध
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