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राजा सूरसिंघजी रो न्याव
राजा रायसिंघजी बीकानेर में बड़ा परतापी हुया है । उणां सं पैलास राजा 'राव' बजता इणां सूं ही राजा री पदवी चालू हुई। 'राजा तो रायसिंघ और सै राई, भोजन तो खीर खांड, और सब पेट भराई कहावत प्रिसिद्ध है। रायसिंघजी रा वेटा सुरसिंघजी भी राजा सावरा बड़ा लाडला हा । राजा सूरसिंघजी वड़ा न्याववान हा उणां री बुद्धि बड़ी तिव्बर ही तथा न्याव करण रो ढंग घणो आछो हो जिकै सुं वां री कीरती नामदरी देस परदेस में जार वास कर लियो ।
जोधपुर माराज सूरसिंघ जी सूं घणी अपणायत राखता तथा पूरा वाकफकार हा एकवार जोधपुर । दरवार विराजिया• राजा रजवाडा री बात नीसरी जद माराजा सायव घणी घणी सोभा करते राजा सूरसिंहजी ३ न्यावरी प्रससा करी मुसाहबाँ मांय सूं एक कैथीराज रो हुकम हुवें तो हूँ बीकानेर जायने बणां रे न्याव री परीख्या करू ? माराजजी कैयो-भले ! पण जांवतै सनद ले जाउयो । उण नै दरबार आपरे खास दसकता री रूक्को कर दियो के ओ म्हारो आदमी है। राज रो न्याव देखण रे वास्ते बीकानेर जायें है सो इण रे बोवार में कोई चूक हुवै तौ माफ करज्यो।
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मुसायबजी जोधाणै सू चाल्या । दर कूचा दर मजळ चालता बीकानेर सैर में आयर कंदोइयां रे बजार में उतरथा । परदेसी रो वैस, खाली दुकान देख'र बैठाया। सामने कंदोई री दुकान । मीठो भुजिया लेर, चावो भूको करियो फेर ठंडो पाणी पीर थोड़ो आडो ह्यग्यो । वैरो ध्यान हो कंदोई खानी । जिता पइसा बट्टे ट्रक र राखतो रैयो सिंज्या रा रोकड़ में जिला रूपिया हा बोरैवार नोट कर जोड़ लीया । अठी ने कंदोई तो सोधो आदमी हो, बापड़े रैं खाते रोकड़ रो जमा खरच हो कोयनी । कूंजड़े रै गल्लै री दाई लाल बूसी री कोथली में रुपिया पईसा भेळा करर घरां जावण री त्यारी करी। ईने परदेसी, खनै ई कोटवाळी ही जठै आयर कोटवाल ₹ आगे कूक्यो- हजूर हूँ गरीब परदेसी मारियो जाऊँला । फलाणे कंदोई म्हारै थेली में इतना रुपिया पइसा हा जिका खोस नै राख लीय हूं कई खाऊंला नै ककर जोधपुर जाऊंला । अड़ो घोळ - दुपारै रो इन्याव मैं तो कठैई नी देखियो कोतवाळ सा । आपने इन बात रो न्याव कर म्हांरी थेली दराणी जौईजै । कोटवाळ सा'ब सिपाई ने मेजर कंदोई ने बुलायो कंदोई कैवेमर्ने गरीब ने कियां याद करचो ? कोटवाळ साव कैयो-तें इये परदेसी री थैली क्यों खोसी ? इण रा इत्ता रुपियां आना पईसा उण में हा। ओ फरियाद करे है, इन री थेली परी सौंप कंदोई कैयो-कोटवाळ साक आतो म्हारे दिनभर री बिकरी री रोकड़ है. मैं तो कोई री थेली खोसी को नी ।
कोटवाळ सा'ब विचारियो-आं दोनां में कुण साचो नै कुण कूड़ो ? कंदोई री वात, चैरो-मोरो देखतां तो साचो हूणो चाईजे पण ओ बापड़ो परदेसी भी झूठो मालूम को देवैनी दूसरे में परदेसी से न्याय करणौ रो म्हारी हक कोनी। कई करू ? मनै तो ओ मामलो हजुर दरबार रै आगेई राखणो पड़सी । इस तरे ३ विचार सं कोटवाल सा'ब दोनों ने खेली है साथै दरवार में पैस
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