Book Title: Bhaktamara stotra Author(s): Mantungsuri, Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 5
________________ वाला छयालीसवाँ श्लोक बना, त्यों ही हथकड़ी-बेड़ी और ताले आदि के बन्धन टूट कर अलग हो गए। आचार्यश्रीजी बाहर निकल आए। राजा पर इस घटना का बड़ा प्रभाव पड़ा और वह जैन बन गया। __ वस्तुतः भक्तामर-स्तोत्र बहुत चमत्कारपूर्ण प्रभाव रखता है । अपने-अपने समय में अनेक आचार्यों ने इस पर टीकाएँ लिखीं और इसका प्रभाव दूर - दूर तक फैलता चला गया। आज भी हजारों सज्जन ऐसे हैं, जो भक्तामर-स्तोत्र का पाठ किए वगैर मुह में अन्न का एक दाना तक नहीं डालते। भक्ति-मार्ग हृदय का मार्ग है। इस पर चलने के लिए मनुष्य को श्रद्धा का पवित्र बल अपने में जागृत करना पड़ता है। जो भक्त सच्चे हृदय से भगवान् का गुणगान करता है, उसके श्री चरणों में अखिल संसार का भौतिक और आध्यात्मिक वैभव अपने आप आ उपस्थित होता है। श्रद्धा चाहिए, केवल । यदि श्रद्धा है, तो फिर भक्त को स्वप्न में भी किसी प्रकार की निराशा न रहेगी। बाबू निरंजनसिंह देहली के बड़े ही श्रद्धालु और भावुक युवक हैं । भक्तामर-स्तोत्र के हिन्दी अनुवाद के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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