Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
11411
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एणं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायको हल्ले उप्पन्नसडे उपपन्नसंसण उप्पनको उहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायको हल्ले समुप्पन्नसढे समुप्पन्नसंसए समुप्पनको उहले उद्वार उट्ठेह उट्ठाए उता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड़ उचागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपग्राहिणं करेइ २ ता बंदह नमसह २ ता चासने णाइदूरे सुस्स्समाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी-से नृणं भंते! चलमाणे चलिए १, उदीरियमाणे उदीरिए २, वेइज्ज़माणे बेहरा ३, पहिजमाणे पहीणे ४, छिजमाणे छिन्ने ५, भिज्रमाणे भिने ६, दड्ढे (उज्झ) माणे दड्ढे ७, मिजमाणे मए ८, निजारिजमाणे निखिने ९१, हंता गोपमा ! चलमाणे चलिए जाव णिज्ज रिजमाणे णिजिण्णे || (सू० ८)
अर्थः-- त्यारपछी जातश्रद्ध- प्रवर्तेली श्रद्धावाळा, जातसंशय, जातकुतूहल, उत्पन्नश्रद्ध, उत्पन्नसंशय, उत्पचकुतूहल, संजातश्रद्ध, संजातसंशय, संजातकुतूहल, समुत्पन्न श्रद्ध समुत्पन्नसंशय अने समुत्पम कुतूहल ते भगवान् गौतम उत्थानवडे उभा थाय छे; उत्थानबडे उभा थहने जे तरफ श्रमण भगवंत महावीर हे त्यां आवे छे; आत्री श्रमण भगवंत महावीरने त्रणचार प्रदक्षिणा करे छे, प्रदक्षिणा करी वांदे छे, नये छे, नमी बहु निकट नहीं तेम बहु दूर नहीं एवी रीते भगवंतनी सामे विनयवडे ललाटे हाथ जोडीभगवंतना वचनने श्रवण करवानी इच्छावाळा भगवंतने नमता अने पर्युपासता आ प्रमाणे बोल्या :- (प्रश्न) हे भगवन ! जे चालतु होय ते 'चाल्यू' (ए प्रमाणे कहेवाय) ? तेमज जे उदीरातुं होय ते 'उदीरापु" वेदातुं होय ते 'वेदायूँ' पडतु होय ते 'पडयूँ' छेदातुं
For Private and Personal Use Only
१ शतके उपेशः १
॥५॥

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 330