Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः मा
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१ शतके उद्देशः१
॥४॥
परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया (भू०६)। अर्थः-सभा नीकळी, धर्म कयो, सभा पाछी गइ. ॥६॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूती नामं अणगारे गोयमA सगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे
दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छदसरीरे संखित्तविउलतेयलेसे चोदसपुब्बी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई समणस्स भगवओ महावीरस्स अदरसामंते उडुंजाणू अहोसिरे झाणकोहोवगए संजमेणं सवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ (मू०७)। ___अर्थः-ते काले ते समये श्रमण भगवंत महावीरनी पासे उभडक रहेला, नीचे नमेल मुखबाळा अने ध्यानरूप कोष्ठमां प्रविष्ट तेमना मोटा शिष्य इन्द्रभूति नामना अनगार साधु संयमवडे अने तपनडे आत्माने भावता विरहे छेबहे छ. जेओ गौतमगोत्रवाळा वजरुषभनाराच संघयणी, सोनाना कटकानी रेखा समान अने पदकेसरो समान धवल वर्णवाळा, उग्रतपस्वी, दीसतपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, उदार, घोर, घोरगुणवाळा, घोरतपवाळा. घोर ब्रह्मचर्यमा रहेवाना स्वभाववाळा, शरीरना संस्कारोने त्यजनार शरीरमा रहेती होवाथी संक्षिप्त अने दूरगामि होवाथी विपुल एवी तेजोलेश्यावाळा, चौद पूर्वना ज्ञाता, चार ज्ञानने प्राप्त अने सर्वाक्षरसंनिपाती छे. ॥ ७॥
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