Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२॥ www.kobatirth.org नवा श्रीवर्द्धमानाय, श्रीमते व सुधर्म्मणे । सर्वानुयोगष्टद्धेभ्यो, वाण्यै सर्वविदस्तथा ॥ २ ॥ एतडीका - चूर्णी जीवाभिगमादिवृत्तिलेशांश्च । संयोज्य पञ्चमानं विवृणोमि विशेषतः किञ्चित् ॥ ३ ॥ अर्थः-- श्रीवर्धमानस्वामीने, श्रीसुधर्मगणधरने, सर्वानुयोगवृद्धोने अने सर्वज्ञनी वाणीने नमी, आ सूत्रनी टीका, चूर्णि अने जीवाभिगमादिवृत्तिना लेशो-अंशोने संयोजी कांइक विशेषथी पंचम अंग- श्रीभगवतीसूत्रने विवरुं हुं ॥ २ ॥ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं [सू० १] ॥ अर्थ :- अर्हतने नमस्कार थाओ, सिद्धोने नमस्कार थाओ, आचार्योंने नमस्कार थाओ, उपाध्यायने नमस्कार थाओ अने सर्व साधुओने नमस्कार थाओ ॥ स० १ ॥ णमो वंभीर लिबीए (सू० २) | अर्थ:- त्राह्मी लिपिने नमस्कार थाओ || सू० २ ॥ नमो सुयस्स || सू० ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थः - श्रुतने नमस्कार हो. ॥ सू० ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, वण्णओ, तस्स णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था, सेणिए राया, चेल्लणा देवी ॥ सू० ४ ॥ अर्थः-- ते काले ते समये राजगृह नामनुं नगर हतुं. वर्णक, ते राजगृह नगरनी बहार उत्तर अने पूर्व दिग्भागमां ईशान कोणमां For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ॥२॥

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