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जाता है, जिससे वैसे साधक को भक्ति-ज्ञान शून्य केवल योग-साधना करना आवश्यक नहीं है । दृष्टि, विचार और आचरण शुद्धि का नाम ही भक्ति, ज्ञान और योग है और उसी परिणमन से " सम्यग् दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग : " है । पराभक्ति के बिना ज्ञान और आचरण विशुद्ध रखना दुर्लभ है, इसी बात का दृष्टांत आ. र. प्रस्तुत कर रहे हैं न? अतएव आप धन्य हैं, क्यों कि निजचैतन्य दर्पण में परम कृपालु की तस्वीर अंकित कर सके हैं, ॐ
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प्रभु स्मरण-बल
"श्री चंदुभाई के लिए विपरीत परिस्थिति में समरस रहने का बल मांगा यह निष्काम भावना अभिनंदनीय है - आत्मार्थी का वही कर्त्तव्य है । सतत प्रभु स्मरण की यदि आदत डाली जाय तो अदृश्य शक्ति के द्वारा अनुपम बल मिलता ही है- इस प्रकार की प्रतीति इस आत्मा को बरतती है; इसलिए भाई को इस दिशा की ओर अंगुलि निर्देश करें । यह आत्मा परमकृपालु के प्रति अंतरंग प्रार्थना करती है कि आप सब में उक्त आत्मबल विकसित हो और परिस्थितियों के प्रभाव से आत्मा का बचाव हो ( वैयक्तिक पत्नों से )
ॐ
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