Book Title: Bbhakti Karttavya
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 83
________________ बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौरेंद्रिय, पंचेंद्रिय, संज्ञी, असंज्ञी, गर्भज चौदे प्रकारे संमूछिम आदि त्रस स्थावर जीवोनी विराधना करी, करावी, अनुमोदी, मन वचन अने कायाले करी उठतां, बेसतां, सूतां, हालतां, चालता, शस्त्र, वस्त्र, मकानादिक उपकरणो उठावतां, मूकतां, लेतां, देतां, वर्ततां वर्तावतां, अपडिलेहणा, दुपडिलेहणा संबंधी, अप्रमार्जना, दुःप्रमार्जना, संबंधी अधिकी, ओछी, विपरित पूजना पडिलेहणा संबंधी अने आहार विहारादिक नाना प्रकारना घणा घणा कर्त्तव्योमा संख्याता असंख्याता अने निगोद, आश्रयी अनंता जीवना जेटला प्राण लूटया, ते सर्व जीवोनो हुँ पापी अपराधी छु; निश्चय करी बदलानो देणदार छु; सर्व जीव मने माफ करो, मारी भूलचूक, अवगुण-अपराध सर्वे माफ करो. देवसीय, राईय, पाक्षिक, चौमासी अने सांवत्सरिक संबन्धी वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. वारंवार खमार्बु छु. तमे सर्वे क्षमजो. खामे मि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमन्तु मे । मित्ती मे सव्व भुसु, वैरं मज्झं न केणई ।। ते दिवस मारो धन्य हशे के जे दिवसे हँ छो कायना जीवोना वैर बदलाथी निवृत्ति पामीश, सर्व 52

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