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५. पदः राग-मालकोष
आत्म-भावना:
हुं तो आत्मा छु जड शरीर नथी (२) शरीर मसाणनी राखनो ढगलो,
___ पळमां विखरे ठोकरथी; मुझ वण से शब पूजो, बाळो,
__ ज्ञायकता नहिं सुख-दुःखथी .. हुं १. स्पर्श गंध रस रूप शब्द अने,
जाति वर्ण लिंग मुझमां नथी; फिल्म बॅटरी प्रेरक जुदो,
तेम देहादिक भिन्न मुजथी... हुं २. सूर्य चंद्र मणि दीप कान्तिनी,
मुज प्रकाश वण किम्मत शी? प्रति देहे जे शोभनिकता छ, .
ते मारी, जुओ विश्व मथी .. ३. अग्नि काष्ठ-आकारे रहे पण,
थाय न काष्ठ वात नक्की; शाके लूण देखाय नहिं पण,
अनुभवाय ते स्वाद थकी हुं ४.
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