Book Title: Bbhakti Karttavya
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ कराव्यो, अनुमोद्यो, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. सत्तरमुं मायामृषावाद पापस्थानक : कपट सहित झर्छ बोल्यो, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. अढारमुं मिथ्यादर्शनशल्य पापस्थानक : श्री जिनेश्वर देवना मार्गमां शंका कांक्षादिक विपरीत प्ररुपणा करी, करावी, अनुमोदी, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. अवं अढार पापस्थानक ते द्रव्यथी, क्षेत्रथी, काळथी, भावथी, जाणतां-अजाणतां, मन-वचन-कायाए करी, सेव्यां, सेवराव्यां, अनुमोद्यां, अर्थे, अनर्थे, धर्म अर्थे, कामवशे, मोहवशे, स्ववशे, परवशे कर्यां, दिवसे के रात्रे, अकला के समूहमां, सूता वा जागतां आ भवमां, पहेलां संख्यातां, असंख्यातां, अनंता भवोमां परिभ्रमण करताँ आज दिन अद्यक्षण पर्यंत रागद्वेष, विषय-कषाय, आळस, प्रमादादिक पौद्गलिक प्रपंच, परगुण-पर्यांयने पोताना मानवारूप विकल्पे करी भूल करी, ज्ञाननी विराधना करी, दर्शननी विराधना करी, 58

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128