________________
करवामां आवे तेनु फल भोगववामां आवे एवो प्रत्यक्ष
अनुभव छे.
विष खाधाथी विषनु फळ ; साकर खावाथी साकरनु फल ; अग्नि स्पर्शथी ते अग्नि स्पर्शनु फल ; हिमने स्पर्श करवाथी हिमस्पर्शनु जेम फळ थया विना रहेतु नथी, तेम कषायादि के अकषायादि जे कंई पण परिणामे आत्मा प्रवर्ते तेनु फळ पण थवा योग्य ज छे, अने ते थाय छे. ते क्रियानो आत्मा कर्ता होवाथी भोक्ता छे.
पांचमु पदः - 'मोक्षपद छे.' जे अनुपचरित व्यवहार थी जीवने कर्मनु कर्तापणु निरूपण कयु, कर्त्तापणु होवाथी भोक्तापणु निरूपण कयु, ते कर्मनु टळवापणु पण छे केम के प्रत्यक्ष कषायादिनुं तीव्रपणु होय पण तेना अनभ्यास थी, तेना अपरिचयथी, तेने उपशम करवाथी, तेनु मंदपणु देखाय छे, ते क्षीण थवा योग्य देखाय छे, क्षीण थई शके छे, ते ते बंध भाव क्षीण थई शकवा योग्य होवाथी तेथी रहित एवो जे शुद्ध आत्म स्वभाव ते रूप मोक्षपद छे.
छठु पद:- ते 'मोक्षनो उपाय छे.' जो क़दी कर्म बंध मात्र थया करे एम ज होय, तो तेनी निवृत्ति कोई
16