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ज्यु बंदर मदिरा पिया, बिछु डंकीत गात, ; भूत लग्यो कौतुक करे, कर्मों का उत्पात. कर्म संग जीव मूढ है, पावे नाना रूप ; कर्म रूप मलके टले, चेतन सिद्ध सरूप. शुद्ध चेतन उज्ज्वल दरव', रह्यो कर्म मल छाय., तप संयम से धोवतां, ज्ञानज्योति बढ़ जाय'. ११ ज्ञान थकी जाने सकल, दर्शन श्रद्धा रूप, चारित्रथी आवत रुके, तपस्या क्षपन सरूप. १२ कर्म रुप मलके शुधे, चेतन चांदी रूप ; निर्मल ज्योति प्रगट भयां, केवल ज्ञान अनूप; १३ मूसी' पाबक सोहगी, फूकांतनो उपाय ; राम चरण चारू मिल्या, मैल कनकको जाय. १४ कर्म रूप बादल मिटे, प्रगटे चेतन चंद ; ज्ञानरुप गुन चांदनी, निर्मल ज्योति अमंद. राग द्वेष दो बीज से, कर्म बंध की व्याध; ज्ञानातम वैराग्य से, पावे मुक्ति समाध'. अवसर बीत्यो जात है, अपने वश कछु होत ; । पुण्य छतां पुण्य होत है, दीपक दीपक-ज्योत. १७
१ द्रव्य २ वधी जाय ३ सोनुं गाळवानी कुलडी ४ व्याधि, रोग ५ समाधि सुख ६ पोताना हाथमां अवसर होय त्यारे कई बने छे
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