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समज सार संसार में, समजु
टाले दोष;
समज समज करी जीव ही, गया अनंता मोक्ष . २१ उपशम विषय कषायनो, संवर तीन योग; किरिया जतन विवेक से, मिटे कर्म दुःख रोग. २२ रोग मिटे समता वधे, समकित व्रत आराध; निर्वैरी सब जीव से, पावे मुक्ति समाध
इति भूलचूक मिच्छामि दुक्कडम्, श्री पंचपरमेष्ठि भगवद्भ्यो नमः ॥
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दोहा
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अनंत चौवीशी जिन नमु सिद्ध अनंता कोड; वर्तमान जिनवर सवे, केवली दो नव कोड. गणधरादि सब साधुजी, समकित व्रत गणधार, यथायोग्य वंदन करूं, जिनआज्ञा अनुसार.
प्रणमी पद पंकज भनी, अरिगंजन अरिहंत, कथन करुं हवे जीवनु, किंचित मुज विरतंत.
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