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दोहा
सिद्धों जैसो जीव है, जीव सोई सिद्ध होय; कर्म मेल का अंतरा, बूझे विरला कोय. कर्म पुद्गल रूप है, जीव रूप है ज्ञान ; दो मिलकर बहु रूप है, बिछड्यां' पद निरवाण. : जीव करम भिन्न भिन्न करो, मनुष जनमकुं पाय : ज्ञानातम वैराग्य से, धीरज ध्यान जगाय. द्रव्य थकी जीव एक है, क्षेत्र असंख्य प्रमाण ; काल थकी रहे सर्वदा, भावे दर्शन ज्ञान. गभित पुद्गल पिंडमें, अलख अमूरति देव ; फिरे सहज भव चक्रमें, यह अनादिकी टेव. फूल अत्तर, घी दूधमें, तिल में तैल छिपाय ; यु चेतन जड करम संग, बन्ध्यो ममता पाय. जो जो पुद्गल की दशा, ते निज माने हंस ; याही भरम विभावतें, बढ़े करम को वंश. रतन बंध्यो गठडी विषे, सूर्य छिप्यो घनमांही; सिंह पिंजरामें दियो, जोर चले कछु नाही.
१ छूटां थये २ आस्मज्ञान ३ जीव
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