________________
स्वरूपने विषे ज शुद्धपणुं, संपूर्णपणुं, अविनाशीपणुं अत्यंत आनन्दपणु, अन्तररहित तेना अनुभवमां आवे छे. सर्व विभाव पर्यायां मात्र पोताने अध्यासथी ऐक्यता थई छे तेथी केवल पोतानुं भिन्नपणुं ज छे, एम स्पष्ट प्रत्यक्षअत्यन्त प्रत्यक्ष अपरोक्ष तेने अनुभव थाय छे. विनाशी अथवा अन्य पदार्थना संयोगने विषे तेने ईष्ट-अनिष्टपणुं प्राप्त थतुं नथी. जन्म, जरा, मरण, रोगादि बाधा रहित संपूर्ण महात्म्यनु ठेकाणु एवं निजस्वरूप जाणी, वेदी ते कृतार्थ थाय छे. जे जे पुरूषोने ए छ पद सप्रमाण एवा परम पुरुषनां वचने आत्मानो निश्चय थयो छे. ते ते पुरूषो सर्व स्वरूपने पाम्या छे; आधि, व्याधि सर्व संगथी रहित थाय छे। अने भावि काळमां पण तेम ज थशे.
सद्गुरू भक्ति रहस्य
जे सत्यपुरूषोए जन्म, जरा, मरणनो नाश करवा वाळो स्वस्वरूपमां सहज अवस्थान थवानो उपदेश कह्यो छे ते सत्पुरूषोने अत्यन्त भक्तिथी नमस्कार छे, तेनी निष्कारण करूणाने नित्य प्रत्ये निरन्तर स्तववामां पण आत्मस्वभाव प्रगटे छे, एवा सर्व
18