Book Title: Bbhakti Karttavya
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ ४७ वली जो आत्मा होय तो, जणाय ते नहि केम? जणाय जो ते होय तो, घट पट आदि जेम. माटे छे नहि आत्मा, मिथ्या मोक्ष उपाय; में अंतर शंका-तणो, समजावो सदुपाय. ४८ ४८ समाधान-सद्गुरू उवाच स्वरूप. भास्यो देहाध्यासथी, आत्मा देह समान; पण ते बन्ने भिन्न छे, प्रगट लक्षणे भान. भास्यो देहाध्यासथी, आत्मा देह समान; पण ते बन्ने भिन्न छे, जेम असि ने म्यान. जे दृष्टा छे दृष्टिनो, जे जाणे छे रूप ; अबाध्य अनुभव जे रहे, ते छे जीवस्वरूप. छे इन्द्रिय प्रत्येक ने, निज निज विषयनु ज्ञान: पांच इन्द्रियना विषयनु, पण आत्माने भान. देह न जाणे तेहने, जाणे न इन्द्रिय प्राण; आत्मानी सत्ता वडे, तेह प्रवर्ते जाण.. सर्व अवस्थाने विषे, न्यारो सदा जणाय; प्रगटरूप चैतन्यमय, ओ अंधाण सदाय. घट, पट आदि जाण तु, तेथी तेने मान; जाणनार ते मान नहिं, कहिये केवु ज्ञान? 27

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128