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परमगुरु की प्रेरक वाणी
0 मैं सहजात्म स्वरूपी आत्मा हूँ। 0 मैं परिपूर्ण सुखी हूँ, सर्व परिस्थितियों से भिन्न हूँ। 0 स्वयं में स्थित हो जायँ, सब सध जायगा उससे । । न पड़ें वाद-विवाद में, मौन-ध्यान में रहें स्थित । 0 प्रतिकूलताओं को "अनुकूलताएँ" मानें । । धर्म अर्थात् “मन की धरपकड़" । - मन का 'अ-मन' हो जाना, मौन हो जाना ही
आत्मज्ञान का जागरण है।
-योगीन्द्र युगप्रधान श्री सहजानन्दघनजी