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वळी स्मरण थाय छे के ए. परिभ्रमण केवल स्वच्छंदथी करतां जीवने उदासीनता केम न आवी? बीजा जीवो परत्वे क्रोध करतां, मान करतां, माया करतां, लोभ करतां के अन्यथा करतां ते माठु छे एम यथायोग्य कां न जाण्यु ? अर्थात् एम जाणवु जोइतु हतु छतां न जाण्यु ए वळी फरी परिभ्रमण करवानो वैराग्य आपे छे.
वळी स्मरण थाय छे के जेना विना एक पळ पण हुँ नहीं जीवी शकुं ऐवा केटलाक पदार्थो (स्त्री आदिक) ते अनंत वार छोडतां, तेनो वियोग थया अनंत काल पण थई गयो; तथापि तेना विना जिवायुं ए कई थोडु आश्चर्यकारक नथी. अर्थात् जे जे वेळा तेवो प्रीतिभाव को हतो ते ते वेळा ते कल्पित हतो ऐवो प्रीतिभाव कां थयो?ए फरी फरी वैराग्य आपे छे. __ वळी जेनु मुख कोई काळे पण नहीं जोउं, जेने कोई काळे हुं ग्रहण नहीं ज करूं; तेने घेर पुत्रपणे, स्त्रीपणे, दासपणे, दासीपणे, नाना जंतुपणे शा माटे जन्म्यो? अर्थात् एवा द्वेषथी एवा रूपे जन्मवु पडयु ! अने तेम करवानी तो ईच्छा नहोती ! कहो, ए स्मरण थतां आ कलेषित आत्मा परत्वे जुगुप्सा नहीं आवती होय ? अर्थात् आवे छे.
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