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है । हर रोज पूजा आरती नियमानुसार होती है । अब केवल शिखरबंध जिनालय बनाने का काम शेष है जो गतिशील हा चुका है । यह तीर्थ जिनालय बन जाने से परिपूर्ण तीर्थ की कमी को पूरी करेगा।
अब परम पूज्य योगीराज युगप्रधान श्री. महजानन्दघनजी महाराज हमारे मध्य नहीं रहे । परंतु आपकी वाणी अभी भी आपका साक्षात्कार होने का प्रमाण देती है। उन्हीं परम पूज्य की विविध रूपी वाणी को कुछ अंशों में यहां प्रकाश में लाने का हम सुअवसर प्राप्त हो रहा है । अतः हम अपने को धन्य समझते हैं। आपका और भी साहित्य : प्रवचन, अनंदघन चौवीशी की सार्थ टीका इत्यादि ग्रंथ प्रकट करने हैं, जो कि सामग्री मिलने पर यथासमय प्रकाशित हो सकेगा।
इस पुस्तक को प्रकाशित करने में जिन जिन भाई-बहनों ने तन से, मन से और धन से सहायता की है उन सभी के प्रति मैं आश्रम के ट्रस्टिओं की ओर से आभार व्यक्त करता हूं।
छअस्थ अवस्था के कारण लिखने में कोई गलति हुई हो तो आप सून पाठक गण क्षमा करेंगे ऐसी आशा व्यक्त कर समाप्त करता हूं।
आपका संतचरणरज एस. पी. घेवरचद जैन
आश्रम मंत्री, [प्रेसिडेन्ट, चेम्बर ओफ कोमर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज
होस्पेट (कर्नाटक)]