Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 5
________________ ( २ ) परोक्ष विषयों का तात्त्विक निरूपण बड़े अनोखे ढंग से किया है । इसमें गणधरवाद में चर्चित जीवादि तत्त्वों के विचार का भारतीय दर्शनों में क्या स्थान है इसका ऐतिहासिक व तुलनात्मक दृष्टि से जो गहरा निरूपण किया गया है वह खास द्रष्टव्य है। ___ यों तो यह सारा ही ग्रन्थ राष्ट्र भाषा में अनूदित करने योग्य है, किन्तु फिलहाल जैनसंस्कृति संशोधन मंडल उतना अधिक खर्च कर सके ऐसा न होने से, तत्त्व जिज्ञासुओं की जिज्ञासा पूर्ण करने के हेतु से प्रस्तावना में से उस तात्त्विक अंश का भाषान्तर इस पुस्तिका के रूप में प्रकट करना ही उचित व पर्याप्त माना गया है। क्या ही अच्छा हो, कोई उदारचेता व्यक्ति की सहायता से इस सारे ग्रन्थ का हिन्दी भाषान्तर प्रकट किया जा सके । अभी तो मैं इतना ही सूचित करना चाहता हूँ कि हिन्दी के जो पाठक गुजराती को पूरे या अधूरे रूप में भी समझ पाते हों वे इस भाषान्तर को तत्काल मंगवा कर अवश्य पढ़ें। इस अनुवाद की अनुमति प्रदान करने के लिये मंडल भो० जे० विद्याभवन की कमेटी का बहुत अभारी है और हिन्दी अनुवाद के लिए श्री पृथ्वीराज M. A. का आभारी है। सरितकुंज, अहमदाबाद-९ ता० १३-९-५३ सुखलाल अध्यक्ष जैन संस्कृति संशोधन मंडल बनारस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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