Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 4
________________ परिचय जैसे गीता में कृष्णार्जुन संवाद है वैसे गणधरवाद में भगवान् महावीर और इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण विद्वानों के बीच हुई तत्त्वचर्चा को संकलित किया गया है । चर्चा का विषय है जीवादि तत्त्व | श्री जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण ने वह चर्चा दार्शनिक तथा तार्किक शैली से पल्लवित की है। मूल ग्रन्थ प्राकृत में और टीका संस्कृत में है, जो तज्ज्ञ खास विद्वानों के लिये ही सुगम है । गणधरवाद की प्रतिष्ठा ऐसी है कि धर्मजिज्ञासु तत्वजिज्ञासु और श्रद्धालु सभी जैन उसको सुनने के लिये, कम से कम पज़ुसन में, तत्पर रहते हैं । परंतु प्राकृत और संस्कृत भाषा के कारण तथा विषयनिरूपण की सूक्ष्मता एवं तार्किकता के कारण सामान्य जन समूह के लिय इस ग्रन्थ को समझना आसान नहीं । इसलिये सभी जिज्ञासुओं का मार्ग सरल करने की दृष्टि से उस ग्रन्थ का गुजराती भाषान्तर, गुजरात की अक ख्यातनामा संस्था गुजरात विद्यासभा के अन्तर्गत श्री भो० जे० विद्याभवन - अहमदाबाद — ने इसी वर्ष प्रसिद्ध भाषान्तरकार हैं पं० श्री दलसुख मालवणिया । सरल, प्रवाहबद्ध और हृदयंगम है कि मूल और टीका को पढ़ने वाला भी उसे पढ़ने के लिये लालायित हो जाय और पढ़ लेने पर बड़ा आह्लाद अनुभव करे । किया है । इसके यह भाषान्तर इतना इस ग्रन्थ के भाषान्तर की इस विशेषता के अतिरिक्त इस भाषान्तर ग्रन्थ की खास और मौलिक कही जा सके ऐसी विशेषता है उसकी विस्तृत एवं अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना | इस प्रस्तावना में पं० मालवणिया ने ग्रंथ, ग्रंथकार के इतिहास आदि के अलावा आत्मा, कर्म और परलोक जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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