Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 11
________________ 2) असमान स्वर सन्धि : (ए और ओ रूप विधान) [पिशल, पारा 149 (पृ.247)] (क) अ + इ = ए जैसे - देस + इला = देसेला (देश की भूमि) आ + इ = ए जैसे - गुहा + इसि = गुहेसि (गुफा का ऋषि) अ + ई = ए जैसे - दिण + ईस = दिणेस (सूर्य) आ + ई = ए जैसे - सिक्खा + ईहा = सिक्खेहा (शिक्षा का विचार) (ख) अ + उ = ओ जैसे - सव्व + उदय = सव्वोदय (सर्वोदय) आ + उ = ओ जैसे - गंगा + उदय = गंगोदय (गंगा का जल) अ + ऊ = ओ जैसे - परोप्पर + ऊहापोह = परोप्परोहापोह (आपस में सोच-विचार) आ + ऊ = ओ जैसे - दया + ऊण = दयोण (दया से हीन) 3) स्वर-सन्धि निषेध : (हेम - 1/6, 7, 9) (क) इ, ई, उ, ऊ के पश्चात् कोई विजातीय स्वर आवे तो सन्धि नहीं होती है। जैसेजाइ + अन्ध = जाइअन्ध (जन्म से अन्धा) पुढवी + आउ = पुढवीआउ (पृथ्वी की आयु) बहु + अट्ठिय = बहुअट्ठिय (बहुत हड्डियों वाला) तणू + अकय = तणूअकय (शरीर से नहीं किया हुआ) (ख) ए और ओ के बाद स्वर होने पर सन्धि नहीं होती है। जैसे - (हेम - 177) लच्छीए + आणंदो = लच्छीएआणंदो (लक्ष्मी का आनन्द) महावीरे + आगच्छइ = महावीरेआगच्छइ (महावीर आते हैं) अहो + अच्छरियं = अहोअच्छरियं (प्रशंसनीय आश्चर्य) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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