Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 25
________________ रत्त सो घड = रत्तघडो (लाल घड़ा), वीरु सो जिणु = वीरजिणो (वीरजिन), सुद्ध सो पक्खु = सुद्धपक्खो (शुद्ध पक्ष), पीअतं वत्थ = पीअवत्थ (पीला वस्त्र), सुंदरा सा पडिमा = सुंदरपडिमा (सुन्दर प्रतिमा)। ___ कभी समास में दोनों शब्द विशेषण भी होते हैं। जैसे - रत्तपीअ वत्थ (लाल-पीला वस्त्र), सीउण्ह जल (शीत और ऊष्ण जल)। . कई बार पूर्व पद उपमा सूचक होता है। जैसे - चंदु इव मुह = चन्दमुहु (चन्द्रमा के समान मुख)। वज इव देह = वज्जदेह (वज्र के समान शरीर)। कई बार पूर्व पद केवल निश्चयबोधक होता है। संजम एव धणु = संजमधणु (संयम ही धन है।), तव चिअधणु = तवधणु (तपही धन है।) 2.2 दिगु समास (द्विगु समास)- कर्मधारय समास का प्रथम शब्द यदि संख्या सूचक हो और दूसरा शब्द संज्ञा हो तब उसे द्विगु समास कहते हैं। (i) समूह अर्थ में द्विगु समास सदा नपुंसकलिंग एकवचन में होता है। जैसे - नवण्हं तत्ताहं समूह = नवतत्त (नव तत्त्व), चउण्हं कसाहं समूह = चउक्कसाय (चार कषाय), तिण्हं लोगाहं समूह = तिलोग (तीन लोक)। (ii) कभी-कभी समूह अर्थ में द्विगु समास पुल्लिंग एकवचन भी हो जाता है। जैसे - तिण्हं वियप्पाहं समूहु = तिवियप्पु (तीन विकल्प)। (ii) अनेक अर्थ में जो द्विगु समास होता है, उसमें वचन और लिंग का उपर्युक्त प्रकार से नियम नहीं होता है। जैसे - तिण्णि लोया = तिलोया, चउरो दिसाओ = चउदिसा अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (16) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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