Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ इनका अर्थ है। इसलिए संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में अर्थ निकालने के लिए प्रथमा विभक्ति के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। सो (पु.), सा (स्त्री.), तं (नपुं.), मणोहरो (पु.), मणोहरा (स्त्री.), मणोहरु (नपुं.)। (ii) वस्तु का परिमाण या नाप बताने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे- (सेर/सेरा/सेरु/सेरो) वि. पु. (गोहूम/गोहूमा/गोहूमु/गोहूमो) पु. (एक सेर गेहूँ)। यहाँ प्रथमा विभक्ति से 'सेर' का नाप विदित होता है। (ii) संख्या का ज्ञान कराने के लिए भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे - एक्को (एक), तिण्णि (तीन), आदि। सम्बोधन में प्रायः प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे हे देवो/देव/देवा/देवु, हे साहू/साहु। अन्य रूप भी मिलते हैं। जैसे - हे कमल, हे वारि, हे महु, हे गामणि, हे सयंभु, हे लच्छि , हे बहु आदि। कर्ता और क्रिया का समन्वय क्रिया का पुरुष तथा वचन कर्ता के अनुसार होता है। जैसे - (i) राम/रामा/रामु/रामो (1/1) झाअइ/आदि (राम ध्यान करता है।) (ii) तुहं (1/1) झाअहि/झाअसि/आदि (तुम ध्यान करते हो।) (iii) हडं (1/1) झाडे/झाआमि/आदि (मैं ध्यान करता हूँ।) वाक्यों में जब दो या दो से अधिक कर्ता संज्ञाएँ हों तो क्रिया बहुवचन की होगी। जैसे - राम/रामा/रामु/रामो (1/1) हरी/हरि (1/1) य चिट्ठहिं/चिट्ठन्ति/ आदि (राम और हरी बैठते हैं।) 1. 2. अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (32) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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