Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 48
________________ अभ्यास 1. उसके द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है। 2. वह बालक से पथ पूछता है। 3. वह गाय से दूध दूहता है। 4. वह पेड़ से फूल इकट्ठा करता है। 5. मुनि बालक के लिए धर्म का उपदेश देता है। 6. वह उससे धन माँगता है। 7. तुम अग्नि से भोजन पकाओ। 8. राजा मंत्री को नगर में ले जाता है। 9. मैं देवालय जाता हूँ। 10. वह रात्रि में मित्र को याद करता है। 11. सज्जन के बिजली की तरह अस्थिर क्रोध होता है। 12. देव स्वर्ग में रहते हैं। 13. कृष्ण के चारों ओर बालक हैं। 14. नगर के समीप नदी है। 15. उसके बिना मैं जाता हूँ। 16. नदी और नगर के बीच में वन है। 17. बालक की ओर तुम स्नेह रखते हो। 18. वह बारह वर्ष तक रहता है। 19. मैं कोस भर चलता हूँ। 20. नदी नगर से दूर है। 21. समुद्र के निकट लंका है। 22. वह दुःखपूर्वक जीता है। - तृतीया विभक्ति - करण कारक 1. अपने कार्य की सिद्धि में जो कर्ता के लिए अत्यन्त सहायक होता है, वह करण कहा जाता है। उसे तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - (i) राम/रामा/रामु/रामो (1/1) बाणेण/बाणेणं/बाणे (3/ 1) रावण/रावणा/रावणु (2/1) मारइ/आदि (राम बाण से रावण को मारता है।) (ii) पुत्तु (1/1) जलेण/जलेणं/जलें (3/1) वत्थु (2/1) __पच्छालइ/आदि (पुत्र जल से वस्त्र धोता है।) 2. कर्मवाच्य और भाववाच्य में तृतीया होती है। अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (39) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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