Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 59
________________ आशीर्वाद देने की इच्छा होने पर आउस, भद्द, कुसल, सुख, हित तथा इनके पर्यायवाची शब्दों के साथ चतुर्थी या षष्ठी होती है। जैसे - रामाहो/ रामस्सु (4/1 या 6/1) वा आउस, भद्द, कुसल, हित, सुख (1/1) (राम चिरंजीवी हो, राम का कल्याण हो, राम को सुख हो, राम कुशल हो, राम का हित हो, आदि।) द्वितीया-तृतीया आदि विभक्ति के स्थान पर षष्ठी होती है। जैसे(i) हउँ (1/1) सीमंधरस्सु (6/1) वन्दउं/वन्दामि (मैं सीमंधर . को वन्दना करता हूँ।) (द्वितीया के स्थान पर षष्ठी)। (ii) धणस्सु (6/1) सो (1/1) लद्ध/आदि (धन से वह प्राप्त किया गया।) (तृतीया के स्थान पर षष्ठी) (iii) सो चोरस्सु (6/1) बीहइ (वह चोर से डरता है।) (पंचमी के स्थान पर षष्ठी) (iv) ताहे पिट्ठीहे (6/1) केस-भारु (1/1) (उसकी पीठ पर केशभार है।) (सप्तमी के स्थान पर षष्ठी)। (खेदपूर्वक) स्मरण करना, दया करना, अर्थ वाली क्रिया के साथ कर्म में षष्ठी होती है। जैसे(i) सो मायाहे/मायहे (6/1) समरइ (वह माता का स्मरण करता है।) (ii) सो बालअस्सु (6/1) दयइ/आदि (वह बालक पर दया करता है।) साधारण अर्थ में स्मरण करने के कर्म में द्वितीया ही होती है। अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (50) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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