Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 58
________________ षष्ठी विभक्ति - सम्बन्ध यह बताया जा चुका है कि सम्बन्ध या षष्ठी विभक्ति कारक नहीं है। संबंध में षष्ठी विभक्ति होती है। उसका क्रिया से सम्बन्ध नहीं होता है। प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियों का क्रिया से संबंध होता है। 1. हेउ (प्रयोजन या कारण अर्थ में) शब्द के साथ षष्ठी होती है। हेउ शब्द तथा कारण या प्रयोजनवाची शब्द दोनों को ही षष्ठी विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - (i) सो अन्नस्सु/अन्नहो/अन्नसु (6/1) हेउ/हेऊ (6/1) गामि/ गामे (71) वसई (वह अन्न के प्रयोजन से गाँव में रहता है।) (यहाँ रहने का हेतु या प्रयोजन अन्न है।) (ii) अज्झयणस्सु/अज्झयणहो (6/1) हेअहेऊ (6/1) सिस्सु (1/1) नयरे (7/1) आगच्छइ (अध्ययन के प्रयोजन से शिष्य नगर में आता है।) (यहाँ नगर में आने का प्रयोजन अध्ययन . है।) 2. यदि हेउ शब्द के साथ सर्वनाम का प्रयोग किया गया हो तो हेउ शब्द और सर्वनाम दोनों में विकल्प से तृतीया, पंचमी या षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे - सो के हेउणं (3/1) वा कहां हेउहे (571) वा कस्सु हेऊ (6/1) अत्थ वसइ (वह किस कारण से यहाँ रहता है।) एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब जिसमें से छाँटी जाती है उसमें षष्ठी या सप्तमी होती है। जैसे - पुण्फेहिं (7/2) पुष्फहं (6/2) वा कमलु (1/1) अईव सोहइ (फूलों में कमल का फूल अत्यन्त शोभता है।) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (49) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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