Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 50
________________ 5. 6. सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। 8. (i) सो (1/1 ) मित्तेण (3/ 1) सह गच्छइ / आदि ( वह मित्र के साथ जाता है।) (ii) लक्खणु (1/1) रामेण (3/1) समं गच्छिअ / गच्छिउ /आदि (लक्ष्मण राम के साथ गया था ।) (iii) हणुवंत (1/1 ) रामें (3/ 1) सद्धिं सोहइ / आदि (हनुमान राम के साथ शोभता है ।). 'विणा' शब्द के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। जलें (3/1) / जलहे (5/1) जलु (2/1) विणा णरु (1/1) न जीवइ /आदि (जल के बिना मनुष्य नहीं जीता है | ) 7. तुल्य (समान, बराबर) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया अथवा षष्ठी होती है। (i) सो देवें (3/1)/ देवस्सु / देवहो / देवसु (6/1) तुल्लो अत्थि (वह देव के तुल्य/समान है ।) (ii) धम्में (3/1/)/ धम्मस्सु / धम्माहो / धम्मासु (6/1) समाणु मित्तु (1/1) `ण अत्थि (धर्म के समान मित्र नहीं है।) शरीर के विकृत अंग को बताने के लिए तृतीया विभक्ति होती है। (i) सो पाएण (3 / 1) खंजु ( 1/1 ) अत्थि ( वह पैर से गड़ा है।) Jain Education International अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक ( 41 ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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