Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 55
________________ 2. 3. 4. 5. गुणवाचक अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग संज्ञा शब्द) जो किसी क्रिया या घटना का कारण बताता है, उसे तृतीया या पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - (i) सो मुक्खहे / मुक्खाहु (5/1) ण सोहइ / आदि (वह मूर्खता के कारण नहीं शोभता है ।) (ii) सो मुक्खें / मुक्खेण / मुक्खेणं (3/1) ण सोहइ / आदि (वह मूर्खता के कारण नहीं शोभता है ।) क. लेकिन अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द गुणवाचक न होने पर तृतीया विभक्ति में ही रहते हैं । जैसे सो धणें/धणेण/धणेणं (3/1 ) उल्लसइ ( वह धन के कारण खुश होता है ।) ख. स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द में तृतीया ही होती है। जैसे - सो बुद्धीए / बुद्धि (3/1 ) छड्डिउ / आदि ( वह बुद्धि के कारण छोड़ दिया गया) भय अर्थवाली धातुओं के योग में भय का कारण पंचमी में रखा जाता है। जैसे - बालउ (1/1) सप्पहे / सप्पहु (5/1) बीहइ / आदि (बालक सर्प से डरता है ।) जब कोई अपने को छिपाता है, तो जिससे छिपना चाहता है वहाँ पंचमी विभक्ति होती है । जैसे - सो गुरुहे / गुरुहे (5/1) लुक्कइ / आदि (वह गुरु से छिपता है ।) रोकना अर्थवाली क्रियाओं के योग में पंचमी विभक्ति रहती है। जैसे - गुरु / गुरू ( 1 / 1 ) सिस्स (2 / 1 ) पावहे / पावाहु ( 5/1 ) रोक्क / आदि ( गुरु शिष्य को पाप से रोकता है।) Jain Education International अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक ( 46 ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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