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गुणवाचक अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग संज्ञा शब्द) जो किसी क्रिया या घटना का कारण बताता है, उसे तृतीया या पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। जैसे -
(i) सो मुक्खहे / मुक्खाहु (5/1) ण सोहइ / आदि (वह मूर्खता के कारण नहीं शोभता है ।)
(ii) सो मुक्खें / मुक्खेण / मुक्खेणं (3/1) ण सोहइ / आदि (वह मूर्खता के कारण नहीं शोभता है ।)
क. लेकिन अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द गुणवाचक न होने पर तृतीया विभक्ति में ही रहते हैं । जैसे
सो धणें/धणेण/धणेणं (3/1 ) उल्लसइ ( वह धन के कारण खुश होता है ।)
ख. स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द में तृतीया ही होती है। जैसे -
सो बुद्धीए / बुद्धि (3/1 ) छड्डिउ / आदि ( वह बुद्धि के कारण छोड़ दिया गया)
भय अर्थवाली धातुओं के योग में भय का कारण पंचमी में रखा जाता है। जैसे - बालउ (1/1) सप्पहे / सप्पहु (5/1) बीहइ / आदि (बालक सर्प से डरता है ।)
जब कोई अपने को छिपाता है, तो जिससे छिपना चाहता है वहाँ पंचमी विभक्ति होती है ।
जैसे - सो गुरुहे / गुरुहे (5/1) लुक्कइ / आदि (वह गुरु से छिपता है ।)
रोकना अर्थवाली क्रियाओं के योग में पंचमी विभक्ति रहती है। जैसे - गुरु / गुरू ( 1 / 1 ) सिस्स (2 / 1 ) पावहे / पावाहु ( 5/1 ) रोक्क / आदि ( गुरु शिष्य को पाप से रोकता है।)
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अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक ( 46 )
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