SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8. जसाहो/जसस्सु (4/1) सिहइ/आदि (वह यश को चाहता है।) कह (कहना), संस (कहना), चक्ख (कहना) क्रियाओं के योग में और इसी अर्थ की अन्य क्रियाओं के योग में जिस व्यक्ति से कुछ कहा जाता है उसमें चतुर्थी होती है। जैसे - हउं.(1/1) तउ/तुज्झ/तुध्र (4/1) सच्च (2/1) कहउं/कहमि/कहामि/आदि संसउं/संसमि/संसामि/आदि चक्खउं/चक्खामि आदि(मैं तुम्हारे लिए सत्य कहता हूँ।) चतुर्थी के अर्थ में अत्थं (अव्यय) का प्रयोग भी होता है, जैसे- सो णाणत्थं (4/1) चेट्ठइ/आदि (वह ज्ञान के लिए प्रयत्न करता है।) 9. . अभ्यास - 1. वह पुत्री के लिए धन देता है। 2. वह धन के लिए प्रयत्न करता है। 3. हरि को भक्ति अच्छी लगती है। 4. राजा मंत्री पर क्रोध करता है। 5. मंत्री राजा को नमस्कार करता है। 6. धान भोजन के लिए पर्याप्त है। 7. वह मुक्ति की चाह रखता है। 8. माता पुत्री के लिए कथा कहती है। 9. राजा भोजन के लिए बैठता है। 10. वह राजा से ईर्ष्या करता है। 11. राम असत्य से घृणा करते हैं। - पंचमी विभक्ति - अपादान कारक 1. जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कहते हैं। जैसे - रुक्खहु/रुक्खहे (5/1) पुप्फु (1/1) पडइ/ आदि यहाँ फूल पेड़ से अलग हो रहा है। इसी प्रकार - गामहु/ गामाहे (5/1) मित्तु (1/1) आगच्छइ/आदि - (यहाँ गाँव से वियोग पाया जाता है। अतः रुक्ख और गाम में पंचमी रखी जाती है।) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (45) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002301
Book TitleApbhramsa Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy