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क्रियाओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान कहलाता है, उसमें चतुर्थी होती है। जैसे
बासु/बालाहो (4/1) पुप्फई/पुप्फाई (1/2) रोअन्ति / रोअहिं/आदि (बालक को फूल अच्छे लगते हैं/ रुचते हैं ।)
कुज्झ (क्रोध करना), दोह (द्रोह करना), ईस (ईर्ष्या करना), असूअ (घृणा करना) क्रियाओं के योग में तथा इसके समानार्थक क्रियाओं के योग में, जिसके ऊपर क्रोध आदि किया जाए उसे चतुर्थी में रखा जाता है। जैसे -
(i) लक्खणु (1/1) रावणहो / रावणस्सु (4/1) कुज्झइ / आदि (लक्ष्मण रावण पर क्रोध करता है ।)
(ii) रावणु (1/1) रामाहो / रामस्सु (4/1 ) ईसइ / आदि (रावण राम से ईर्ष्या करता है | )
(iii) महिला/महिल (1/1) हिंसा / हिंसाहे/हिंसहे (4/1) असूअइ/ आदि (महिला हिंसा से घृणा करती है ।)
(iv) दुट्ठ मणुस (1/1) सज्जणाहो / सज्जणस्सु दोहइ /आदि (दुष्ट मनुष्य सज्जन से द्रोह करता है ।)
नमो (णमो) के योग में चतुर्थी होती है - महावीराहो / महावीरस्सु (4/1) नमो (णमो) (महावीर को नमस्कार) । ' णम' क्रिया के योग में द्वितीया और चतुर्थी दोनों होती हैं। (प्रयोग वाक्य देखें) ।
अलं (पर्याप्त के अर्थ में) चतुर्थी होती है। जैसे - झाणु (1/1 ) मोक्खहो / मोक्खस्सु (4/1) अलं अस्थि (ध्यान मोक्ष के लिए पर्याप्त है ।)
सिह ( चाहना ) क्रिया के योग में चतुर्थी होती है । जैसे - सो
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अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक (44)
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